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Bajreshwari Mata Temple: जानिए आखिर क्यों प्रसिद्ध है ब्रजरेश्वरी मंदिर

Bajreshwari Mata Temple: जानिए आखिर क्यों प्रसिद्ध है ब्रजरेश्वरी मंदिर

Bajreshwari Mata Temple हिमाचल की प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों में से एक है इस मंदिर को भी देवी के शक्तिपीठों में गिना जाता है यहां काँगड़ा  में स्थित है माना  जाता है कांगड़ा का ब्रजरेश्वरी शक्तिपीठ मां का एक ऐसा धाम है जहां पहुंच कर भक्तों का हर दुख उनकी तकलीफ मां की एक झलक भर देखने से दूर हो जाती है. यह 52 शक्तिपीठों में से मां की वो शक्तिपीठ जहां माँ  का दाहिना वक्ष गिरा था और माता यहा शक्तिपीठ के रूप में स्थापित हो गयी

Chamunda Devi: मंदिर के बारे में बिस्तृत जानकारी पढ़ें

Bajreshwari Mata Temple in  Kangra

तीन पिण्डिया :
मंदिर में गर्भ ग्रह में प्रतिषिष्ट पहली और मुख्य पिण्डी माँ ब्रजरेश्वरी की है दूसरी माँ भद्रकाली और तीसरी  सबसे छोटी पिण्डी माँ एकादशी की है एकादशी के दिन चावल का प्रयोग नहीं किया जाता लेकिन इस शक्तिपीठ में माँ एकादशी स्वय मौजूद है  इसलिए यहा भोग में चावल ही चढ़ाये जाते है देवी का प्रसाद तीन भागो में ,महालक्ष्मी,महाकाली, महासरस्वती के लिए विभाजित करके चढ़ाया जाता है यहां मंदिर में पांच बार आरती होती है दोपहर के  बाद मंदिर के कपाट दुबारा भक्तो के लिए खोल दिया जाता है और  भक्त माँ का आशीर्वाद लेने पहोच जाते है माता मंदिर में पिण्डी के रूप में पूजी जाती है

 पौराणिक कथाएँ:

ब्रजरेश्वरी देवी के धाम के बारे में कहते है जब सती ने पिता के द्वारा किये गए शिव के अपमान से कुपित होकर अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ कुंड में कहकर अपने प्राण त्याग दिए तब क्रोधित शिव उनकी मृत देह को लेकर पूरी सृष्टि में घूमे शिव का क्रोध शांत करने के लिए भगवान् विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े -टुकड़े कर दिए शरीर के  टुकड़े जहा जहा गिरे वह स्थान शक्तिपीठ कहलाया  

 काँगड़ा के इस स्थान पर माता सती का दाहिने वक्ष गिरा था इसलिए ब्रजरेश्वरी शक्तिपीठ में माँ के वक्ष की पूजा होती है  पहले यह बहुत प्रसिद्ध था इसे बहुत  बार विदेशी  लुटेरों द्वारा लुटा गया ग़जनवी शासक़ महमूद नै १००९ ई. में इस शहर को लुटा और मंदिर को नष्ट कर दिया यहां मस्जिद भी बनाया गया था  1905 में  जोरदार भूकंप से सारा मंदिर नष्ट हो गया था १९२० में इसे दुबारा बनाया गया  

माता ब्रजरेश्वरी का यह शक्तिपीठ अपने आप में अनूठी और विशेष है क्योंकि यहां मात्र हिन्दू भक्त ही शीश नहीं झुकाते बल्कि मुस्लिम और सिख धर्म के श्रद्धालु भी इस धाम में आकर अपनी आस्था के फूल चढ़ाते हैं. कहते हैं ब्रजेश्वरी देवी मंदिर के तीन गुंबद इन तीन धर्मों के प्रतीक हैं. पहला हिन्दू धर्म का प्रतीक है, जिसकी आकृति मंदिर जैसी है तो दूसरा मुस्लिम समाज का और तीसरा गुंबद सिख संप्रदाय का प्रतीक है


कहते हैं जो भी भक्त मन में सच्ची श्रद्धा लेकर मां के इस दरबार में पहुंचता है उसकी कोई भी मनोकामना अधूरी नहीं रहती. फिर चाहे मनचाहे जीवनसाथी की कामना हो या फिर संतान प्राप्ति की लालसा. मां अपने हर भक्त की मुराद पूरी करती हैं. मां के इस दरबार में पांच बार आरती का विधान है, जिसका गवाह बनने की ख्वाहिश हर भक्त के मन में होती है


मां ब्रजेश्वरी देवी की इस शक्तिपीठ में प्रतिदिन मां की पांच बार आरती होती है. सुबह मंदिर के कपाट खुलते ही सबसे पहले मां की शैय्या को उठाया जाता है. उसके बाद रात्रि के श्रृंगार में ही मां की मंगला आरती की जाती है. मंगला आरती के बाद मां का रात्रि श्रृंगार उतार कर उनकी तीनों पिण्डियों का जल, दूध, दही, घी, और शहद के पंचामृत से अभिषेक किया जाता है. उसके बाद पीले चंदन से मां का श्रृंगार कर उन्हें नए वस्त्र और सोने के आभूषण पहनाएं जाते हैं. फिर चना पूरी, फल और मेवे का भोग लगाकर संपन्न होती है मां की प्रात: आरती.  


BHAIRAV BABA:-

स्थानीय नागरिक  आने वाली समस्याओं का पता लगाते हैं। बज्रेश्वरी देवी मंदिर में स्थापित भैरव बाबा की प्रतिमा के बारे में कहा जाता है कि यह प्रतिमा 5 हजार साल से भी ज्यादा पुरानी है। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि जब भी उन्हें प्रतिमा से आंसू गिरते हुए देखते हैं वह श्रद्धालुओं के संकट को दूर करने के लिए विशेष पूजा-अर्चना शुरू कर देते हैं। इसके अलावा हवन का भी आयोजन किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि ये सब करने से भैरव बाबा भक्तों पर आने वाले परेशानियों को टाल देते हैं। यह जगह, तन्त्र-मन्त्र, सिद्धियों, ज्योतिष विद्याओं, तन्त्रोक्त शक्तियों, देव परंपराओं की प्राप्ती का पसंदिदा स्थान रहा है। यह एक शक्ति पीठ है जहा मां सती का दाहिना वक्षस्थल गिरा था। इसलिए इसे स्तनपीठ भी कहा गया है और स्तनपीठ भी अधिष्ठात्री बज्रेश्वरी देवी है। स्तनभाग गिरने पर वह शक्ति जिस रूप में प्रकट हुई वह बज्रेश्वरी कहलाती हैं। मंदिर परिसर में ही भगवान लाल भैरव का भी मंदिर है।

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