इसका रूप, रंग, पहचान :

यह पौधा अकौआ एक औषधीय पादप है। इसको मदार, मंदार, आक, अर्क भी कहते हैं. इसका वृक्ष छोटा और छत्तादार होता है. पत्ते बरगद के पत्तों समान मोटे होते हैं। हरे सफेदी लिये पत्ते पकने पर पीले रंग के हो जाते हैं.

इसका फूल सफेद छोटा छत्तादार होता है। फूल पर रंगीन चित्तियाँ होती हैं. फल आम के तुल्य होते हैं जिनमें रूई होती है। आक की शाखाओं में दूध निकलता है। वह दूध विष का काम देता है. आक गर्मी के दिनों में रेतिली भूमि पर होता है। चौमासे में पानी बरसने पर सूख जाता है।

आक या मदार के फायदे :

शुगर और बाहर निकला पेट : आक के पौधे की पत्ती को उल्टा (उल्टा का मतलब पत्ते का खुदरा भाग) कर के पैर के तलवे से सटा कर मोजा पहन लें। सुबह और पूरा दिन रहने दे रात में सोते समय निकाल दें या फिर रात को लगा दे और सुबह निकाल ले। एक सप्ताह में आपका शुगर लेवल सामान्य हो जायेगा। साथ ही बाहर निकला पेट भी कम हो जाता है।

घाव : आक का हर अंग दवा है, हर भाग उपयोगी है। यह सूर्य के समान तीक्ष्ण तेजस्वी और पारे के समान उत्तम तथा दिव्य रसायनधर्मा हैं। कहीं-कहीं इसे ‘वानस्पतिक पारद’ भी कहा गया है। आक के कोमल पत्ते मीठे तेल में जला कर अण्डकोश की सूजन पर बाँधने से सूजन दूर हो जाती है। तथा कडुवे तेल में पत्तों को जला कर गरमी के घाव पर लगाने से घाव अच्छा हो जाता है।

खाँसी : इसके कोमल पत्तों के धुंए से बवासीर शाँत होती है. आक के पत्तों को गरम करके बाँधने से चोट अच्छी हो जाती है. सूजन दूर हो जाती है. आक की जड के चूर्ण में काली मिर्च पिस कर मिला ले और छोटी छोटी गोलियाँ बना कर खाने से खाँसी दूर होती है।

शीत ज्वर शाँत : आक की जड को पानी में घीस कर लगाने से नाखूना रोग अच्छा हो जाता है. आक की जड छाया में सुखा कर पीस लेवे और उसमें गुड मिलाकर खाने से शीत ज्वर शाँत हो जाता है.

गठिया : आक की जड 2 सेर लेकर उसको चार सेर पानी में पकावे जब आधा पानी रह जाय तब जड निकाल ले और पानी में 2 सेर गेहूँ छोडे जब जल नहीं रहे तब सुखा कर उन गेहूँओं का आटा पिसकर पावभर आटा की बाटी या रोटी बनाकर उसमें गुड और घी मिलाकर प्रतिदिन खाने से गठिया बाद दूर होती है। बहुत दिन की गठिया 21 दिन में अच्छी हो जाती है।

बवासीर के मस्से : आक का दूध पाँव के अँगूठे पर लगाने से दुखती हुई आँख अच्छी हो जाती है। बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से जाते रहते हैं। बर्रे काटे में लगाने से दर्द नहीं होता। चोट पर लगाने से चोट शाँत हो जाती है।

बवासीर : आक के कोमल पत्तों के बराबर की मात्रा में पांचों नमक लेकर, उसमें सबके वजन से चौथाई तिल का तेल और इतना ही नींबू रस मिलाकर पात्र के मुख को कपड़ मिट्टी से बन्दकर आग पर चढ़ा दें। जब पत्ते जल जाये तो सब चीजों को निकालकर पीसकर रख लें। इसे 500 मिलीग्राम से 3 ग्राम तक आवश्यकतानुसार गर्म जल, छाछ या शराब के साथ सेवन कराने से बादी बवासीर नष्ट हो जाती है।

जोड़ों में दर्द होने पर : आक का फूल, सोंठ, कालीमिर्च, हल्दी व नागरमोथा को बराबर मात्रा में लें। इन्हें जल के साथ महीन पीसकर चने जैसी गोलियां बना लें। 2-2 गोलियां सुबह और शाम को जल के साथ सेवन करें।

दाद : आक (मदार) के दूध को हल्दी के साथ तिल के तेल में उबालकर दाद में या एक्जिमा में लेप करने से लाभ होता है।

बहरापन : आक (मदार) के पत्तों पर घी लगाकर आग में गर्म करके उसका रस निचोड़ लें। इस रस को हल्का सा गर्म करके रोजाना कान में डालने से कान का बहरापन ठीक हो जाता है।

कील-मुहासें : हल्दी में आक के दूध को मिलाकर कील मुंहासों पर लेप करने से कुछ ही दिनों में लाभ होगा और चेहरे पर चमक आएगी।

हिलते हुए दांत निकालना : हिलते हुए दांत की जड़ में एक-दो बूंद आक का दूध लगाने से वह आसानी से निकल जाता है। आक की जड़ के टुकड़े को दुखते हुए दांत से दबाने से दर्द कम हो जाता है।

खुजली : आक के 10 सूखे पत्ते सरसों के तेल में उबालकर जला लें। फिर तेल को छानकर ठंडा होने पर इसमें कपूर की 4 टिकियों का चूर्ण अच्छी तरह मिलाकर शीशी में भर लें। यह तेल खाज-खुजली वाले अंगों पर दिन तीन बार लगाएं। इससे खुजली ठीक हो जाती है।

इसके हानिकारक प्रभाव :

आक का पौधा विषैला होता है। आक की जड़ की छाल अधिक मात्रा में प्रयोग करने से आमाशय और आंतों में जलन उत्पन्न होकर जी मिचलाहट यहां तक कि उल्टी भी होने लगती है इसका ताजा दूध अधिक मात्रा में देने से विष का कार्य करता है।

अत: प्रयोग में मात्रा का विशेष ध्यान रखें। आक के हानिकारक प्रभाव को नष्ट करने के लिए घी और दूध का उपयोग किया जाता है।