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चोंटी👸💂 रखने से लेकर 🙏🙏 हाथ जोड़ने तक 12 हिन्दू रीति-रिवाज के वास्तविक वैज्ञानिक रहस्य

   

★ चोंटी 👸💂 रखने से लेकर 🙏 हाथ जोड़ने तक 12 हिन्दू  रीति-रिवाज के वास्तविक वैज्ञानिक रहस्य 


➡ रीति-रिवाज और परंपराएं हर किसी की व्यक्तिगत आस्था का सवाल होती हैं। लेकिन हिंदू धर्म में बहुत से ऐसे रीति-रिवाज हैं जिनके वैज्ञानिक आधार हैं। आज हम आपको उन हज़ारो रीति रिवाजों के वैज्ञानिक रहस्यों में से सिर्फ 12 रीति-रिवाज के रहस्य बताएँगे, ताकि आप अपनी आधुनिक पीढ़ी को समझा सको की विश्व का सबसे प्राचीन धर्म ऐसे ही नही कहते, जिसने हमे 4 वेद दिए जिसकी सत्यता से कोई नही बच पाया तभी पूरा विश्व आज आयुर्वेद और योग की शरण में है और यह परम सत्य है। कोई भी वैज्ञानिक संस्था इनकी सत्यता को चुनोती नही दे सकती। इसलिए अपनी भारतीय संस्कृति पर गर्व करे और इसे जीवन में अपनाये ताकि आपको सभी सुख मिल सके। जिसमे से पहला सुख निरोगी काया जो हमे आयुर्वेद और योग से प्राप्त हो सकता है। अगले आर्टिकल में हम पवित्र क़ुरान की आयतो का वैज्ञानिक रहस्य बताएँगे। सभी धर्म में हज़ारो वैज्ञानिक रहस्य छुपे है आप उनको अपनी तार्किक और बौद्धिक शक्ति से समझ पाएंगे और यह आपको मैडिटेशन से प्राप्त होगी। अगर पोस्ट अच्छी लगे तो आपसे निवेदन है कृपया इसे शेयर जरूर करे।


➡ 12 हिन्दू रीति-रिवाज के वैज्ञानिक रहस्य :

1. हाथ जोड़कर नमस्कार करना हिंदू धर्म की प्राचीन परंपरा और सभ्यता है। दोनों हाथों को जोड़कर नमस्कार करने से आप सामने वाले को सम्मान भी देते हैं साथ ही इस क्रिया के वैज्ञानिक महत्व के कारण आपको शारीरिक लाभ भी मिल जाता है। जब हम दोनों हाथों को आपस में जोड़ते हैं तो हमारी हथेलियों और उंगलियों के उन बिंदुओं पर दबाव पड़ता है जो आंख, नाक, कान, दिल आदि शरीर के अंगों से सीधा संबंध रखते हैं। इस तरह दबाव पड़ने को एक्वा प्रेशर चिकित्सा भी कहते हैं। इस तरह नमस्कार करने से हम सामने वाले के स्पर्श में भी नहीं आते हैं, जिससे किसी प्रकार के संक्रमण का खतरा भी नहीं रहता है।
2. पैर की उंगली में रिंग पहनना भारतीय संस्कृति का हिस्सा तो है ही, लेकिन इसके वैज्ञानिक फायदे भी है। अमूमन रिंग को पैर के अंगूठे के बगल वाली दूसरी उंगली में धारण किया जाता है। इस उंगली की नस महिलाओं के गर्भाशय और दिल से संबंध रखती हैं। पैर की उंगली में रिंग पहनने से गर्भाशय और दिल से संबंधित बीमारियों की गुंजाइश नहीं रहती है। साथ ही चांदी की रिंग पहनना ज्यादा ठीक होता है। चांदी ध्रुवीय ऊर्जा से शरीर को ऊजार्वान बना देती है।
3. पुराने समय में तांबे के सिक्के हुआ करते थे जिनकी जगह आज स्टेनलैस स्टील के सिक्कों ने ले ली है। तांबा पानी को शुद्ध करता है। इसलिए पुराने में समय में नदियां में तांबे के सिक्के इसलिए डाले जाते थे, क्योंकि ज्यादातर नदियां ही पीने के पानी का श्रोत हुआ करती थीं।
4. दोनों भौहों के बीच माथे पर तिलक लगाने से उस बिंदू पर दवाब पड़ता है जो हमारे तंत्रिका तंत्र का सबसे खास हिस्सा माना जाता है। तिलक लगाने से इस खास हिस्से पर दबाव पड़ते ही ये सक्रिय हो जाता है और शरीर में नई ऊर्जा का संचार होने लगता है। तिलक लगाने से एकाग्रता में बढ़ोतरी होती है। चेहरे की मांसपेशियों में रक्त का संचार भी सही से होता है।
5. मंदिर में घंटे या घंटियां होने का भी वैज्ञानिक कारण है। घंटे की आवाज कानों में पड़ते ही आध्यात्मिक अनुभूति होती है। इससे एकाग्रता में बढ़ोतरी होती है और मन शांत हो जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि धंटे की आवाज बुरी आत्माओं को मंदिर से दूर रखती है। घंटे की आवाज भगवान को प्रिय होती है। जब हम मंदिर में घंटा बजाते है तो करीब सात सेकेंड तक हमारे कानों में उसकी प्रतिध्वनि गूंजती है। माना जाता है कि इस दौरान घंटे की ध्वनि से हमारे शरीर में मौजूद सुकून पहुंचाने वाले सात बिंदू सक्रिय हो जाते हैं और नाकारात्मक ऊर्जा शरीर से बाहर हो जाती है।
6. भारतीय थाली में मसालेदार व्यंजन और मीठाई एक साथ परोसी जाती है लेकिन मिठाई का सेवन हमेशा खाने के आखिरी में किया जाता है। कहा जाता है कि पहले मसालेदार खाने से शरीर के पाचन तंत्र के लिए जरूरी पाचक रस और अम्ल सक्रिय होते हैं। फिर मिठाइयों के सेवन से पाचक क्रिया नियंत्रित हो जाती है।
7. मेंहदी औषधीय गुणों से युक्त प्राकृतिक जड़ी बूटी है। मेंहदी की महक से तनावमुक्त होने में मदद मिलती है। यही वजह है कि शादियों या अन्य भारतीय कार्यक्रमों में मेंहदी को परंपरा का अहम हिस्सा माना जाता है।
8. भारतीय संस्कृति में धरती पर बैठकर भोजन करने की परंपरा है। इसका वैज्ञानिक कारण ये है कि जब हम धरती पर दोनों पैर मोड़कर बैठते हैं तो इस अवस्था को सुखासन या अर्ध पदमासन कहते हैं। इस प्रकार बैठने से दिमाग की उन धमनियों को सकारात्मक संदेश पहुंचता है जो पाचन तंत्र से जुड़ी होती हैं।
9. मानव शरीर का भी अपना एक चुंबकीय क्षेत्र होता है। विज्ञान के अनुसार पृथ्वी भी एक प्रकार का बड़ा चुंबक ही है। जब हम उत्तर दिशा में सिर करके सोते हैं तो पृथ्वी के चुंबकीय बल से मानव शरीर का चुंबकीय बल ठीक बिपरीत होता है। इससे हमारे हृदय पर ज्यादा जोर पड़ने लगता है। दूसरा कारण ये है के इस प्रकार सोने से खून में मौजूद आयरन दिमाग में एकत्र होने लगता है। इससे दिमाग की बीमारियां होने लगती हैं।
10. भारतीय सभ्यता में ऐसा समझा जाता है कि कानों के छेदन से कानों में किसी प्रकार की बीमारी नहीं होती है साथ ही बौद्धिकता में बढ़ातरी होती है। कान छेदने का रिवाज केवल भारत ही नहीं दुनिया भर में देखा जा सकता है। लेकिन आज के परिवेश में बहुत से लोग सुंदर दिखने के लिए कान छेदन करवा लेते हैं ताकि सुंदर-सुंदर झुमके और अन्य आभूषण पहन सकें।
11. पुराने समय से ही हमारी दिनचर्या में सुबह की अहमियत पर बल दिया गया है। इसलिए भारतीय संस्कृति में सुबह की शुरूआत को सूर्य नमस्कार से जोड़ा गया है। भारतीय लोग सूर्य को पानी से अर्घ्य देकर नमस्कार करते हैं। पानी से टकराकर सूर्य की किरणें आखों में पड़ने से आंखों की बीमारियां नहीं होती है। साथ ही बारह तरह के आसन एक साथ होने से शरीर बलिष्ट होता है।
12. आयुर्वेद में बताया जाता है कि सिर के जिस भाग में चोटी (शिखा) को धारण किया जाता है, वह भाग तंत्रिका तंत्र से सीधे संपर्क में होता है। चोटी इस तंत्र को सुरक्षा प्रदान करती है। इससे एकाग्रता में बढ़ोतरी होती है और शरीर को ऊर्जा मिलती है।

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