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24 घंटे में जोड़ते हड्डी, कैंसर का भी होता इलाज, 2 दिन में 300 रोगियों को देखते है.

      

करौं (देवघर) : 

  • भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद फिर से प्रचलित हो रही है। न सिर्फ देश में, बल्कि विदेश में भी इसकी मांग बढ़ रही है। वर्तमान केंद्र सरकार भी इसके प्रचार-प्रसार में सक्रियता दिखा रही है। राजधानी नई दिल्ली में आयुर्वेद चिकित्सा पर आधारित एम्स की स्थापना इस दिशा में एक बड़ा कदम है। 
  • आयुर्वेद की बढ़ती मांग को देखते हुए कई बड़ी कंपनियां इस कारोबार में उतर आई है और बेहतर पैकेजिंग और मार्केटिंग के बूते अंग्रेजी दवा कंपनियों को मात देने लगी है। इसके बावजूद जंगलों से जड़ी-बूटी लाकर आयुर्वेद की दवा तैयार करनेवाले गांव के वैद्यों की बात ही कुछ और है। अपने पूर्वजों से चिकित्सा का ज्ञान लेकर ये वैद्य आज भी सामान्य से लेकर असाध्य रोगों तक के मरीजों की उम्मीद हैं।

मिलने का समय :

  • देवघर के करौं प्रखंड स्थित मोहलीडीह गांव में रहनेवाले वैद्य वकील मरांडी भी ऐसे ही ग्रामीण चिकित्सक हैं जिनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली है। वकील मरांडी के चिकित्सीय ज्ञान का ही नतीजा है कि प्रखंड मुख्यालय से लगभग चार किमी दूर इस अदिवासी बहुल गांव की ख्याति झारखंड के गिरिडीह, दुमका, बोकारो, देवघर समेत बंगाल व बिहार तक फैली हुई है। 
  • जड़ी-बूटी के सहारे चिकित्सक वकील मरांडी कई रोगों का इलाज करते हैं। ऐसे तो यहां सप्ताह के प्रत्येक दिन मरीजों का इलाज किया जाता है। लेकिन, बुधवार व रविवार को यहां विशेष भीड़ रहती है। इन दो दिनों में लगभग 300 मरीजों का इलाज किया जाता है। 
  • सहायक ओबिसर मरांडी, ज्ञानेश्वर मरांडी, साहेब टुडू, छोटेलाल की मदद से वकील लोगों का इलाज करते हैं।

विरासत में मिला ज्ञान :

  •  चिकित्सक वकील मरांडी ने कहा कि यह ज्ञान उन्हें दादा स्व. मेघू मरांडी, पिता सुकल मरांडी व चाचा सुजन मरांडी से मिला है। बचपन से दोनों को जड़ी-बूटी से मरीजों को इलाज करते देखा करता था। देखते-देखते थोड़ी जानकारी हासिल कर ली। 
  • 1976-77 में रानी मंदाकिनी उच्च विद्यालय करौं से मैट्रिक की परीक्षा पास की। इसके बाद से मरीजों का इलाज करना शुरू कर दिया। बाद में उन्होंने मधुपुर, कोलकाता व रांची से आयुर्वेदिक चिकित्सा का प्रशिक्षण भी लिया। वकील ने बताया कि अब तक आधा दर्जन कैंसर मरीजों का इलाज कर चुके हुए हैं। यहां हड्डी रोग के मरीज सबसे अधिक इलाज के लिए पहुंचते है। 
  • गठिया, वात, पथरी, बवासीर, मधुमेह आदि का इलाज वह 30 वर्षों से सफलता से कर रहे हैं। बताया कि यहां वैसे मरीज यहां आते हैं जो बड़े-बड़े व नामी-गिरामी अस्पतालों में इलाज कराकर थक चुके हैं।

जंगल खत्म होने से जड़ी-बूटी का संकट

  • वकील मरांडी का कहना है कि क्षेत्र में जंगल का अस्तित्व खत्म हो जाने से जड़ी बूटी खोजने में काफी परेशानी उठानी पड़ती है। इसके लिए दुमका जाना होता है। अंग्रेजी दवा के प्रयोग से साइड इफेक्ट की संभावना रहती है। कारण यह रासायनिक तत्वों से बनी होती है। 
  • लेकिन जड़ी-बूटी से तैयार दवा के सेवन से कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है। जड़ी-बूटी से तैयार दवा में काफी ताकत होती है। बताया कि हड्डी को मात्र 24 घंटे में जोड़ा जा सकता है। मधुमेह व पथरी के मरीजों को तीन माह में ठीक करने का दावा किया है।

समाजसेवा से मिलता परम संतोष

  • इलाज के नाम पर वकील मात्र दस रुपये फीस लेते हैं। इसके अलावा कुछ आयुर्वेदिक दवा लेने पर मरीजों को उसकी कीमत चुकानी पड़ती है। उनका मानना है कि गरीबों की सेवा करने से परम सुख प्राप्त होता है।

टूटी हड्डी को जोड़ने के लिए कारगर और रामबाण घरेलू उपाय :

  1. बबूल के बीज और शहद  : बबूल के बीजों को पीसकर तीन दिन तक शहद के साथ लेने से अस्थि भंग दूर हो जाता है और हडि्डयां वज्र के समान मजबूत हो जाती हैं। या बबूल की फलियों का चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित रूप से सेवन करने से टूटी हड्डी जल्द ही जुड़ जाती है।
  2. हल्दी, गुड़ और गाय का घी : आपके लिए ऐसा आसान आयुर्वेदिक उपाय जो आपकी टूटी हुई हड्डियों को तथा कमजोर हो गयी हड्डियों को फिर से मजबूत बना देगा। कई बार कुछ बिमारियों के कारण हमारी हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं तथा कई बार दुर्घटना के कारण हमारी हड्डियाँ टूट जाती हैं। वह डॉक्टर द्वारा जोड़ तो दी जाती हैं पर उनमे पुरानी वाली मजबूती नहीं आती। पर इसके लिए आयुर्वेद ने हमें उपाय दिए हैं जिनसे इन्हें हम पुनः मजबूत बना सकते हैं। तो आइये जानते हैं ये उपाय विस्तार से…

आवश्यक सामग्री :

  • इसके लिए आपको चाहिए पिसी हुई हल्दी एक चम्मच। उम्र के हिसाब से इसको कम या ज्यादा भी किया जा सकता है और इसके साथ ही आपको चाहिए होगी इसके लिए पुरानी गुड़ 5 ग्राम या एक चम्मच और इसके बाद हमें चाहिए देसी घी दो चम्मच और अगर ये गाय का मिल जाता है तो और भी अच्छा रहेगा। अगर आपके पास पुराना गुड़ ना हो तो आप गुड़ को एक काली पन्नी में रखकर धूप में 4-5 घंटे के लिए छोड़ दें इसमें पुराने गुड़ जैसे गुण आ जायेंगे।

बनाने की विधि और सेवन का तरिका : 

  • इन तीनों ही चीज़ों को एक कप पानी में मिला लें। उसके बाद इसे उबाल लें। अब इसको इतना उबालें की पानी आधा रह जाये। इसके बाद इसे जितना गर्म आप पी सकते हैं पी लें। अब ध्यान रखने की बात ये है कि इस प्रयोग को आप 15 दिनों से लेकर 6 महीने तक कर सकते हैं जब तक आप चाहें। इस प्रयोग को नियमित करने के बाद आप देखेंगे की आपको अपने शरीर में एक अलग ऊर्जा का अहसास होगा तथा हड्डियों में भी मजबूती दिखेगी।

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