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नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस बने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख, 2 प्रदर्शनकारी छात्र नेता भी शामिल: जानिए इस अर्थशास्त्री के हसीना से रिश्ते

 

बांग्लादेश में जारी हिंसा के बीच वहाँ की सेना ने अंतरिम सरकार का गठन कर दिया है। नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस ने गुरुवार (8 अगस्त 2024) को अंतरिम सरकार के प्रमुख के रूप में शपथ ली। वे 8 अगस्त को ही पेरिस से ढाका पहुँचे। अंतरिम सरकार का प्रमुख बनने के लिए विशेष तौर पर उन्हें बुलाया गया था। पीएम मोदी ने उन्हें शुभकामनाएँ दी हैं।

आरक्षण के खिलाफ जमात-ए-इस्लामी और छात्रों के हिंसक प्रदर्शन के बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके साथ ही उन्होंने बांग्लादेश छोड़कर भारत आ गई थीं। इसके बाद बांग्लादेश की सेना ने वहाँ की व्यवस्था को अपने नियंत्रण में ले लिया था और अंतरिम सरकार बनाने की घोषणा की थी।

पीएम मोदी ने X पर लिखा, “प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस को उनकी नई ज़िम्मेदारी संभालने पर मेरी शुभकामनाएँ। हम उम्मीद करते हैं कि जल्द ही सामान्य स्थिति बहाल हो जाएगी, जिससे हिंदुओं और अन्य सभी अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी। भारत शांति, सुरक्षा और विकास के लिए दोनों देशों के लोगों की साझा आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बांग्लादेश के साथ काम करने के लिए प्रतिबद्ध है।”

इस बीच पूरे बांग्लादेश में हिंसा का दौर जारी है। जमात के कट्टरपंथी तत्व हिंदुओं को निशाना बना रहे हैं। हिंदुओं की हत्या की जा रही है, उनके घरों एवं मंदिरों को जलाया जा रहा, संपत्तियों को लूटा जा रहा है और महिलाओं के साथ बलात्कार किया जा रहा है। हिंसा एवं उत्पीड़न से तंग होकर हिंदू बांग्लादेश छोड़कर भारत में घुसने की कोशिश कर रहे हैं।  

अंतरिम सरकार के मुखिया मुहम्मद यूनुस ग्रामीण बैंक के संस्थापक और मशहूर सोशल एक्टिविस्ट हैं। उन्हें बांग्लादेश में बैंकों का जनक माना जाता है। देश में उन्होंने ग्रामीण बैंकों की पूरी श्रृंखला विकसित की है। उन पर श्रम कानून उल्लंघन का एक मामला भी चल रहा था, लेकिन कार्यभार संभालने से ठीक एक दिन पहले एक अदालत ने उनकी पिछली सजा को पलट दिया था।

मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में 16 लोगों ने शपथ ली है। इनमें मोहम्मद नाहिद इस्लाम और आसिफ साजिब भुइयाँ भी शामिल हैं। ये दोनों वो छात्र नेता हैं, जिन्होंने बांग्लादेश में आरक्षण विरोधी प्रदर्शन का नेतृत्व का किया था। उन्होंने देश के लोगों से सुरक्षा का आश्वासन दिया है।

यूनुस ने कहा, “बांग्लादेश ने आज एक नया विजय दिवस स्थापित किया है। हमें उसे ध्यान में रखते हुए और मजबूत बनाते हुए आगे बढ़ना है। युवाओं ने इसे संभव बनाया है। इसके लिए मैं उनकी प्रशंसा करता हूँ और उन्हें धन्यवाद देता हूँ। इस देश पुनर्जन्म हुआ है। इस पुनर्जन्म में मुझे जो बांग्लादेश मिला है, वह बहुत तेजी से आगे बढ़ेगा ये हमारा वादा है।”

उधर, शेख हसीना के बेटे सजीब वाजेद ने राजनीति में लौटने का इशारा किया है। प्रतिक्रिया देते हुए वाजेद ने कहा, “मैंने कहा था कि मेरा परिवार अब राजनीति में शामिल नहीं होगा, लेकिन जिस तरह से हमारी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर हमले हो रहे हैं, हम हार नहीं मान सकते।”  

कौन हैं मुहम्मद यूनुस

मोहम्मद यूनुस एक बैंकर और अर्थशास्त्री और नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उनका जन्म 28 जून 1940 को अविभाजित भारत में हुआ था। वे बंगाल के चिटगाँव के जौहरी हाजी मोहम्मद सौदागर के घर पैदा हुए थे। शुरुआती शिक्षा के बाद उन्होंने ढाका यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र की पढ़ाई की और उसके बाद अमेरिका चले गए। वहाँ अर्थशास्त्र में PhD करने के बाद वहीं इकोनॉमिक्स पढ़ाने लगे।

मुहम्मद यूनुस बांग्लादेश बनने के बाद स्वदेश लौटे। उन्होंने चिटगाँव यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र विभाग के प्रमुख का पद संभाला। यूनुस ने कर्ज से दबे परिवारों को बाहर निकालने के लिए महिलाओं की स्वयं सहायता समूह बनाया, जो बेहद सफल रहा। यही आगे चलकर 1983 में ग्रामीण बैंक की नींव बना। इसकी सफलता के बाद अमेरिका ने भी इसे अपनाया है।

ग्रामीण बैंक की सफलता के बाद यूनुस ने 1997 में ग्रामीण फोन कंपनी की शुरुआत की। इस कंपनी ने बांग्लादेश में सबसे पहले प्रीपेड मोबाइल सेवाओं की शुरुआत की। आज ग्रामीण फोन बांग्लादेश की सबसे बड़ी मोबाइल नेटवर्क कंपनी है। इसका 48% बाजार पर कब्जा है और 8 करोड़ से अधिक ग्राहक हैं। यह सरकार को सबसे ज्यादा टैक्स देने वाली कंपनी है।

गरीबी मिटाने के लिए किए गए उनके कार्यों के लिए साल 2006 में ग्रामीण बैंक और मोहम्मद यूनुस को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उस दौरान वे ग्रामीण बैंक से जुड़े हुए थे। इसके साथ ही वे बांग्लादेश में कई विकास परियोजनाओं में सलाहकार की हैसियत से अपनी सेवाएँ दे रहे थे।

राजनीति में कदम

18 फरवरी 2007 को यूनुस ने ‘नागरिक शक्ति’ नाम से एक राजनीतिक पार्टी बनाई। उन्होंने कहा कि वे इस पार्टी में साफ-सुथरी छवि वाले लोगों को ही शामिल करेंगे। इनमें प्रोफेसर, पत्रकार जैसे चर्चित चेहरे थे। यूनुस का इरादा 2008 का चुनाव लड़ने का था। इसके बाद वे तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना की आँखों में खटकने लगे।

शेख हसीना ने यूनुस का नाम लिए बिना एक बार कहा था, “राजनीति में नए लोग अक्सर खतरनाक होते हैं। उन्हें संदेह की नजर से देखा जाना चाहिए। ये देश को फायदा पहुँचाने से अधिक नुकसान पहुँचाते हैं।” इस तानातनी के बाद मुहम्मद यूनुस ने पार्टी की स्थापना के सिर्फ 76 दिन बाद 3 मई को पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया।

साल 2008 में सरकार बनाने के तुरंत बाद शेख हसीना ने यूनुस के पीछे जाँच एजेंसियों को लगा दिया। उन पर सरकार को बिना बताए विदेशों से पैसा लेने और टेलीकॉम नियम तोड़ने के आरोप लगाए गए। उन्हीं की कंपनी के स्टाफ ने यूनुस पर केस कर दिया। शेख हसीना आरोप लगाए कि यूनुस गरीबों को अधिक ब्याज पर कर्ज देते हैं।

भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, मुहम्मद यूनुस तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर्रहमान के कट्टर समर्थक थे। टेनेसी में पढ़ाने के दौरान यूनुस ने बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक अखबार लॉन्च किया था। हालाँकि, पार्टी बनाने के बाद दोनों के बीच दुश्मनी हो गई। यह कहानी इंदिरा गाँधी और राजमाता गायत्री देवी की तरह है।

शेख हसीना के निशाने पर आने के बाद जनवरी 2024 में मुहम्मद यूनुस पर 100 से अधिक केस चल रहे थे। उन्हें भ्रष्टाचार के मामले में कोर्ट ने 6 महीने जेल की सजा सुनाई थी। हालाँकि, यह सजा अब पलट दी गई है। शेख हसीना को बांग्लादेश में लोकतंत्र का कातिल बताने वाले यूनुस का कहना है कि भारत की शह पर वह तानाशाह बनीं।

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