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कॉन्ग्रेस ने बताया ‘नफरती’, ओवैसी बोले- अब नमाज भी नहीं पढ़ने देंगे: जदयू ने कहा- यह मुस्लिम विरोधी नहीं, लोकसभा में पेश हुआ वक्फ संशोधन बिल

 

भारत में किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने वाले वक्फ बोर्ड के शक्तियों को कम करने के लिए केंद्र सरकार ने लोकसभा में गुरुवार (8 अगस्त) को वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक पेश किया। यह विधेयक अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री किरेन रिजीजू ने सदन में पेश किया। वहीं, विपक्षी सांसदों ने इसे ‘असंवैधानिक’ और ‘कठोर’ बताते हुए इसका विरोध किया है।

किरेन रिजीजू द्वारा बिल को सदन में रखने के बाद सत्ताधारी एनडीए गठबंधन के सदस्यों ने मेज थपथपाकर उसका स्वागत किया। वहीं, विपक्षी दलों के सदस्यों ने सदन में हंगामा करके इसका विरोध किया। कॉन्ग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने कहा कि यह विधेयक संविधान पर ‘मौलिक हमला’ है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह विधेयक समुदायों के बीच धार्मिक विभाजन और नफरत पैदा करेगा।

उन्होंने कहा, “प्रत्येक मस्जिद में विवाद होता है, जहाँ कोई लिखित दस्तावेज नहीं होता है। आपका मूल विचार संघर्ष पैदा करना और समुदायों के बीच गुस्सा पैदा करना और हर जगह हिंसा करना है।” वेणुगोपाल ने कहा, “यह विधेयक संविधान पर एक मौलिक हमला है। इस विधेयक के माध्यम से वे (सत्ता पक्ष) एक प्रावधान डाल रहे हैं कि गैर-मुस्लिम भी वक्फ गवर्निंग काउंसिल के सदस्य होंगे।”

विधेयक को ‘धार्मिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला’ बताते हुए वेणुगोपाल ने केंद्र सरकार की आलोचना की। उन्होंने कहा, “इसके बाद आप (सत्ता पक्ष) ईसाइयों की ओर जाएँगे, फिर जैनों की तरफ। भारत के लोग अब इस तरह की विभाजनकारी राजनीति को स्वीकार नहीं करेंगे।” वक्फ संशोधन विधेयक को महाराष्ट्र और हरियाणा में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों से जोड़ा।  

उन्होंने आगे कहा, “हम हिंदू हैं, लेकिन साथ ही हम अन्य धर्मों की आस्था का भी सम्मान करते हैं। यह विधेयक महाराष्ट्र और हरियाणा चुनावों के लिए विशेष है। आप यह नहीं समझते कि पिछली बार भारत के लोगों ने आपको स्पष्ट रूप से सबक सिखाया था। यह एक संघीय व्यवस्था पर हमला है।”

डीएमके की सांसद कनिमोझी ने कहा कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 30 का उल्लंघन करता है, जो अल्पसंख्यकों को उनके संस्थानों का प्रबंधन करने से संबंधित है। उन्होंने कहा, “यह विधेयक एक विशेष धार्मिक समूह को निशाना बनाता है।” वहीं, शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने इस विधेयक को वापस लेने या स्थायी समिति के भेजने की माँग की।

वहीं, AIMIM के सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी ने भी बिल का विरोध किया। ओवैसी ने कहा, “यह विधेयक न्यायपालिका के सभी सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। सरकार वक्फ बोर्ड के प्रबंधन को प्रतिबंधित कर रही है। हिंदू बोर्ड उपयोग और रीति-रिवाज से मान्यता प्राप्त हैं। आप मुझे नमाज पढ़ने से रोक रहे हैं।”

तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद से लोकसभा के सांसद असदुद्दीन औवैसी ने केंद्र की मोदी सरकार को मुस्लिम विरोधी बताया। ओवैसी ने आगे कहा, “एक हिंदू अपनी पूरी संपत्ति दे सकता है, लेकिन मैं इसे अल्लाह के नाम पर नहीं दे सकता। हिंदू बोर्ड या गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।”

इसके बाद सत्ता पक्ष की ओर केंद्रीय मंत्री ललन सिंह उर्फ राजीव रंजन सिंह ने अपनी बात रखी। उन्होंने विपक्ष को जमकर धोया। जदयू नेता ललन सिंह ने कहा कि यह विधेयक मुस्लिम विरोधी नहीं है। यह विधेयक समावेशी है और धार्मिक विभाजन को बढ़ावा नहीं देता है। उन्होंने कहा, “यहाँ मंदिर का तर्क दिया जा रहा है। अगर आपको मंदिर और संस्था में फर्क नहीं समझ में आ रहा है तो क्या कहा जाए।” 
ललन सिंह ने कहा, “एक निरंकुश संस्था में पारदर्शिता लाने के लिए यह कानून बनाया जा रहा है। विपक्ष इसकी तुलना मंदिरों से कर रहा है। वे मुख्य मुद्दे से भटक रहे हैं। केसी वेणुगोपाल को बताना चाहिए कि हजारों सिख कैसे मारे गए। किस टैक्सी ड्राइवर ने इंदिरा गाँधी की हत्या की? अब, वे बात कर रहे हैं अल्पसंख्यक की।”

प्रस्तावित संशोधन

वक्फ संशोधन बिल 2024 के जरिए केंद्र की मोदी सरकार 44 संशोधन करेगी। बिल में वक्फ कानून 1995 के सेक्शन 40 को हटाया जाएगा। इस धारा के तहत वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति घोषित करने का अधिकार दिया गया है। संशोधन बिल के जरिए वक्फ कानून 1995 का नाम बदल कर एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम 1995 किया जाएगा।

केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में मुस्लिम के साथ-साथ गैर-मुस्लिमों को भी प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। इसमें दो महिलाओं को रखना भी अनिवार्य होगा। इसमें मुस्लिम समुदाय के अन्य पिछड़ा वर्ग- शिया, सुन्नी, बोहरा, आगाखानी को भी प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। वक्फ परिषद में एक केंद्रीय मंत्री, 3 सांसद, मुस्लिम संगठनों के 3 प्रतिनिधि, मुस्लिम कानून के 3 जानकार, सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के 2 पूर्व जज, एक वकील, राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त 4 लोग, भारत सरकार के सचिव आदि होंगे।

नए संशोधनों के अनुसार, वक्फ ट्रिब्यूनल के आदेशों के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील के लिए 90 दिनों का समय दिया जाएगा। वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण के लिए सर्वे कमिश्नर का अधिकार कलेक्टर या कलेक्टर द्वारा नामित डिप्टी कलेक्टर को होगा। बोहरा और आगाखानी के लिए ‘औकाफ़’ (दान की गई संपत्ति और वक्फ के रूप में अधिसूचित) के लिए अलग से बोर्ड की स्थापना की जाएगी।

वक्फ काउंसिल किसी संपत्ति पर दावा नहीं ठोक सकता। वहीं, वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति को वक्फ के रूप में दर्ज करना चाहता है तो पहले उसे सभी संबंधितों पक्षों को नोटिस जारी करना होगा। यह पंजीकरण एक केंद्रीकृत वेबसाइट पर होना चाहिए। एक केंद्रीय पोर्टल और डेटाबेस के माध्यम से वक्फ के पंजीकरण के तरीके को सुव्यवस्थित करने की भी इसमें व्यवस्था की गई है।

नए संशोधनों के अनुसार, केवल प्रैक्टिस करने वाले मुस्लिमों को ही अपनी चल या अन्यथा संपत्ति वक्फ परिषद या बोर्ड को दान करने की अनुमति होगी। दान करने फैसला सिर्फ कानूनी मालिक ही ले सकता है।वर्तमान कानून के तहत, किसी भी वक्फ संपत्ति को ऐसी संपत्ति नहीं माना जा सकता है, यदि इसके बारे में कोई विवाद हो, खासकर यदि इसके सरकारी संपत्ति होने के बारे में कोई सवाल हो।

ऐसे विवादों में अधिकारी जाँच करेंगे और राज्य को एक रिपोर्ट सौंपेंगे, जिसके बाद रिकॉर्ड समायोजित किए जाएँगे। नए कानून में वक्फ बोर्ड को मिलने वाले पैसे का इस्तेमाल विधवाओं, तलाकशुदा और अनाथों के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए और वह भी सरकार द्वारा सुझाए गए तरीके से। एक प्रमुख प्रस्ताव यह भी है कि महिलाओं की विरासत की रक्षा और सुनिश्चित की जानी चाहिए।

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