Himachal News: हमसे क्या भूल हुई, जो यह सजा हमको मिली…
भाजपा के नाराज नेताओं की गुप्त मंत्रणा से सियासी गलियारों में छिड़ गई नई चर्चा
‘अपनों की महफिल में बेगाने हम, सबकी असलियत को पहचाने हम,’ यह गाना आजकल भाजपा पर पूरी तरह से फिट बैठ रहा है। क्योंकि अपनी ही पार्टी में हाशिए पर चल रहे कई भाजपा नेता एक अलग मंच पर एकत्रित होना शुरू हो गए हंै। विधानसभा चुनावों और उपचुनाव में हार मिलने से भाजपा अभी पूरी तरह से संभली नहीं थी कि भाजपा के एक गुट ने गुप्त मंत्रणाओं का दौर शुरू कर हिमाचल से लेकर दिल्ली तक के सियासी गलियारों में हलचल पैदा कर दी है। सबसे बड़ी बात यह है कि विधानसभा चुनावों में भाजपा को डबल इंजन की सरकार होने के बाद भी हार का सामना करना पड़ा था। खासकर पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा सरकार में मंत्री रहे ज्यादातर नेता चुनाव हार गए थे।
इसके बाद विधानसभा उपचुनाव का परिणाम भी ज्यादा संतोषजनक नहीं है। जानकार मानते हैं कि भाजपा ने जो तीन सीटें जीती हैं, उसमें कई जगह तो पार्टी कैडर से ज्यादा कैंडीडेट का अपना कद काम कर गया है। अकेले देहरा की बात करें, तो देहरा से भाजपा के उम्मीदवार होशियार सिंह को पिछले विधानसभा चुनावों से महज 341 वोट ज्यादा मिले हैं। इसका साफ संदेश है कि भाजपा कैडर या जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं में अंदर खाते तूफान भर गया था, जो वोट वाले दिन अपना असर दिखा गया। इसके बाद अब भाजपा के पुराने नेताओं की गुप्त बैठकों ने पार्टी के पदाधिकारियों को सोचने पर मजबूर कर दिया है।
ऐसा रहा, तो पार्टी के लिए मुश्किल होगा डैमेज कंट्रोल
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि भाजपा के भीतर भी वर्चस्व की जंग चल रही है और इसी का नजीता है कि कई नेताओं को हाशिए पर धकेला जा रहा है। इसलिए पुराने कार्यकर्ता व पदाधिकारी अब एक मंच पर एकत्रित होना शुरू हो गए हैं। हालांकि अभी तक भाजपा संगठन इस मामले में चुप्पी साधे है, लेकिन आने वाले समय में भाजपा के सामने डैमेज कंट्रोल सबसे बड़ी चुनौती हो सकती है।
बीजेपी के नए-पुराने नेताओं में समन्वय नहीं
राजनीतिक पंडित मानते हैं कि विधानसभा के आम चुनावों के दौरान भाजपा के कई प्रत्याशियों को हार का मुंह देखना पड़ा। महज 15 माह के बाद हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा को वहीं से अच्छी लीड मिली। इससे यह भी कहा जा सकता है कि विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा ने जो प्रत्याशी दिया था, वह जनता की पसंद नहीं था या फिर अपनी विश्वसनीयता खो चुका था। साथ ही भाजपा अपने बागियों के साथ समन्वय नहीं बना पाई। इन दिनों इन मसलों पर चर्चाएं हो रही हैं।
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