यह पौधा मधुमेह या डायबिटीज़ के लिए संजीवनी बूटी है.................
वैसे तो ये पौधा हर जगह देखने को मिल जाता है लेकिन इसके उपयोग की जानकारी कम लोगो को है तो यहाँ हम आपको इसके प्रयोग की जानकारी दे रहे है. आक-अर्क के पौधे, शुष्क, ऊसर और ऊँची भूमि में प्राय: सर्वत्र देखने को मिलते हैं.
इस वनस्पति के विषय में साधारण समाज में यह भ्रान्ति फेंली हुई है कि आक का पौधा विषेला होता है तथा यह मनुष्य के लिये घातक है. इसमें किंचित सत्य जरूर है क्योकि आयुर्वेद संहिताओं मे भी इसकी गणना उपविषों में की गई है. यदि इसका सेवन अधिक मात्रा में कर लिया जाये तो, उलटी दस्त होकर मनुष्य यमराज के घर जा सकता है.
इसके विपरीत यदि आक का सेवन उचित मात्रा में, योग्य तरीके से, चतुर वैद्य की निगरानी में किया जाये तो अनेक रोगों में इससे बडा फायदा होता है. इसका हर अंग दवा है, हर भाग उपयोगी है एवं यह सूर्य के समान तीक्ष्य. तेजस्वी और पारे के समान उत्तम तथा दिव्य रसायन धर्मा हैं।
अकौआ एक औषधीय पादप है। इसको मदार, मंदार, आक, अर्क भी कहते हैं. इसका वृक्ष छोटा और छत्तादार होता है. पत्ते बरगद के पत्तों समान मोटे होते हैं. हरे सफेदी लिये पत्ते पकने पर पीले रंग के हो जाते हैं.
इसका फूल सफेद छोटा छत्तादार होता है. फूल पर रंगीन चित्तियाँ होती हैं. फल आम के तुल्य होते हैं जिनमें रूई होती है. आक की शाखाओं में दूध निकलता है. वह दूध विष का काम देता है. आक गर्मी के दिनों में रेतिली भूमि पर होता है. चौमासे में पानी बरसने पर सूख जाता है.
आक के पौधे की पत्ती को उल्टा (उल्टा का मतलब पत्ते का खुदरा भाग) कर के पैर के तलवे से सटा कर मोजा पहन लें. सुबह और पूरा दिन रहने दे रात में सोते समय निकाल दें. एक सप्ताह में आपका शुगर लेवल सामान्य हो जायेगा. साथ ही बाहर निकला पेट भी कम हो जाता है.
आक का हर अंग दवा है, हर भाग उपयोगी है. यह सूर्य के समान तीक्ष्ण तेजस्वी और पारे के समान उत्तम तथा दिव्य रसायनधर्मा हैं. कहीं-कहीं इसे ‘वानस्पतिक पारद’ भी कहा गया है. आक के कोमल पत्ते मीठे तेल में जला कर अण्डकोश की सूजन पर बाँधने से सूजन दूर हो जाती है. तथा कडुवे तेल में पत्तों को जला कर गरमी के घाव पर लगाने से घाव अच्छा हो जाता है.
इसके कोमल पत्तों के धुंए से बवासीर शाँत होती है. आक के पत्तों को गरम करके बाँधने से चोट अच्छी हो जाती है. सूजन दूर हो जाती है. आक की जड के चूर्ण में काली मिर्च पिस कर मिला ले और छोटी छोटी गोलियाँ बना कर खाने से खाँसी दूर होती है.
आक की जड की राख में कडुआ तेल मिलाकर लगाने से खुजली अच्छी हो जाती है. आक की सूखी डँडी लेकर उसे एक तरफ से जलावे और दूसरी ओर से नाक द्वारा उसका धूँआ जोर से खींचे शिर का दर्द तुरंत अच्छा हो जाता है.
आक का पत्ता और ड्ण्ठल पानी में डाल रखे उसी पानी से आबद्स्त ले तो बवासीर अच्छी हो जाती है. आक की जड का चूर्ण गरम पानी के साथ सेवन करने से उपदंश (गर्मी) रोग अच्छा हो जाता है. उपदंश के घाव पर भी आक का चूर्ण छिडकना चाहिये. आक ही के काडे से घाव धोवे.
आक की जड को पानी में घीस कर लगाने से नाखूना रोग अच्छा हो जाता है. आक की जड छाया में सुखा कर पीस लेवे और उसमें गुड मिलाकर खाने से शीत ज्वर शाँत हो जाता है.
आक की जड 2 सेर लेकर उसको चार सेर पानी में पकावे जब आधा पानी रह जाय तब जड निकाल ले और पानी में 2 सेर गेहूँ छोडे जब जल नहीं रहे तब सुखा कर उन गेहूँओं का आटा पिसकर पावभर आटा की बाटी या रोटी बनाकर उसमें गुड और घी मिलाकर प्रतिदिन खाने से गठिया बाद दूर होती है. बहुत दिन की गठिया 21 दिन में अच्छी हो जाती है.
आक का दूध पाँव के अँगूठे पर लगाने से दुखती हुई आँख अच्छी हो जाती है. बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से जाते रहते हैं. बर्रे काटे में लगाने से दर्द नहीं होता. चोट पर लगाने से चोट शाँत हो जाती है.
नोट : जहाँ के बाल उड़ गये हों वहाँ पर आक का दूध लगाने से बाल उग आते हैं. लेकिन ध्यान रहे इसका दूध आँख में नहीं जाना चाहिए वर्ना आँखें खराब हो जाती है. उपरोक्त कोई भी उपाय अपनी ज़िम्मेदारी पर सावधानी से ही करें।
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