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AMU को अल्पसंख्यक दर्जा देने से इनकार करने वाला फैसला सुप्रीम कोर्ट ने पलटा, अब क्या स्टेटस होगा पूरा जजमेंट समझिए

 

AMU Minority Status News
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AMU Minority Status News: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने से इनकार करने वाला फैसला सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा सिर्फ इसलिए खत्म नहीं किया जा सकता कि उसकी स्थापना राज्य ने की है. चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में बैठी सात जजों की संवैधानिक पीठ ने बहुमत से फैसला सुनाते हुए कहा है कि कोर्ट को यह जरूर देखना पड़ेगा कि असल में यूनिवर्सिटी की स्थापना किसने की और इसके पीछे किसका दिमाग रहा. 

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के फैसले के संदर्भ में संवैधानिक बेंच ने माना है कि इसकी स्थापना अल्पसंख्यक समुदाय ने की थी. इसलिए संविधान के अनुच्छेद 30 के मुताबिक संस्थान अल्पसंख्यक दर्जा पाने का दावा कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा है उसके इस नए फैसले के आलोक में अब तीन जजों की रेगुलर बेंच ये तय करेगी कि AMU को अल्पसंख्यक दर्जा दिया जाना चाहिए तो कैसे दिया जाना चाहिए.

 

आपको बता दें कि 7 जजों की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया है, जिसका नेतृत्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने किया है. मिली जानकारी के अनुसार, चीफ जस्टिस सहित चार जजों का एक पक्ष फैसला है, जबकि तीन ने अपना अलग मत रखा है. सीजेआई चंद्रचूड़, जस्टिस खन्ना, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा का एक फैसला है. वहीं, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस  दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की राय अलग है. 

क्या है अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का इतिहास?

देश के प्रमुख शिक्षण संस्थानों में गिने जाने वाले अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना 24 मई 1920 को की गयी थी. उस समय के महान समाज सुधारक सर सैयद अहमद खान ने मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा प्रदान करने की जरूरत महसूस करते हुए 1877 में मुस्लिम एंग्लो ओरिएंटल कालेज की स्थापना की थी. यही कॉलेज आगे जाकर 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना. यह आजादी के बाद देश के चार केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में से एक था.

 

AMU के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि 1857 की क्रांति ने सर सैयद अहमद खान पर गहरा असर डाला था और उनके परिवार के लोग भी अंग्रेजों की गोलियों का शिकार हुए थे. सर खान ने आधुनिक शिक्षा को हथियार बनाकर अंग्रेजों को सबक सिखाने की ठान ली. वह ईस्ट इंडिया कंपनी में शामिल हुए और आधुनिक शिक्षा के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल करने के इरादे से 1870 में इंग्लैंड गए. 

वहां उन्होंने ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज जैसे विश्वप्रसिद्ध संस्थानों का दौरा किया और भारत में भी आधुनिक शिक्षा का उजाला फैलाने का सपना देखा. उन्होंने वापस आकर अलीगढ़ में मात्र सात छात्रों के साथ एक मदरसे की स्थापना की. धीरे धीरे छात्रों की संख्या बढ़ने लगी और 1877 में इसका विस्तार करते हुए एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की शुरुआत की गई. यही कॉलेज 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना जो दुनियाभर में एक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान के तौर पर प्रसिद्ध है. 


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