यमराज की क्रूरता, यमुना की निर्मलता और एक वरदान… जानें कार्तिक माह में ही क्यों मनाया जाता है भैया दूज, समझें तिलक-भोज का महत्व
ऐसी ही एक परंपरा हमारे समाज में भैया दूज को मनाने की सदियों से चलती चली आई है। जीवन में तमाम व्यस्तता के बाद भी अगर आज इस त्योहार का लोग महत्व समझते हैं, इसे मनाने के लिए उत्सुक रहते हैं, तो यही इस परंपरा की जीत है।
भैया दूज हर वर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। कहते हैं कि इस दिन भाई के माथे पर तिलक करके बहन अपने भाई की लंबी उम्र की कामना करती है, लेकिन सिर्फ तिलक से लंबी उम्र का क्या संबंध है ये कई लोग सोचते हैं तो चलिए आज एक पौराणिक कथा के जरिए इस तिलक के महत्व के बारे में जानते हैं और समझते हैं कि इसका संबंध कैसे भाई की दीर्घायु से जोड़ते हैं।
यम और यमुना से जुड़ी कथा
ये कथा है यमराज और उनकी बहन यमुना मैया की। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यमराज और यमुना मैया दोनों ही भगवान सूर्य की संताने हैं लेकिन सूर्य देव की तेज किरणों के कारण वो अपनी माता संज्ञा के साथ अलग रहे। बाद में यम देव ने अपनी यमपुरी बसाई जहाँ दुष्टों को उनके कर्मों के लिए दंड दिया जाता था।
यमराज इस वरदान को सुन सोच में पड़ गए कि अगर ऐसा हुआ तो यमपुरी में आएगा ही कौन। तभी बहन यमुना ने फिर कहा कि आप चिंता न करें, मुझे यह वरदान दें कि जो लोग आज के दिन बहन से तिलक कराएँ और मेरे जल में स्नान करे वो कभी यमपुरी न जाए।
इसी वरदान के बाद द्वादशी तिथि को भाई दूज मनाने की परंपरा चली और हर बहन ने अपने भाई के माथे पर तिलक करके उनकी लंबी उम्र की कामना करनी शुरू की।
भाई दूज का भारत में महत्व
आज इस त्योहार को मनाने का तरीका जगह-जगह अलग हो सकता है लेकिन इस त्योहार को लेकर विश्वास सबका एक ही है। ये केवल एक भाई दूज केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह पारिवारिक बंधनों को मजबूत करने का अवसर भी प्रदान करता है। पूरे भारत में इसे विभिन्न नामों से मनाया जाता है। कहीं इसे भाई दूज कहते हैं तो कहीं पर भाई तीज कहा जाता है। विदेशों में भी धीरे-धीरे भारतीय संस्कृति के प्रति रूचि रखने वाले लोग इस उत्सव को मनाते हैं।
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