सियासत में शून्य से शिखर तक का मुकाम हासिल करने वाले मुलायम सिंह यादव का आज भी है जलवा कायम
समाजवादी पार्टी के संस्थापक और यूपी में समाजवाद राजनीति की धुरी रहे यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री पद्मविभूषण मुलायम सिंह यादव की आज यानी 22 नवंबर के दिन जयंती है. मुलायम उन नेताओं में से रहे हैं जिन्होंने अपने लम्बे सियासी सफर में राजनीति के कई पड़ाव पार किए हैं. अपनी पार्टी का गठन किया तो सियासत में समाजवाद का मतलब भी गढ़ा. ये मुलायम सिंह यादव की लोकप्रियता का आलम था कि उनके लिए उनके समर्थकों ने कई नारे गढ़े, जो समाजवादी पार्टी की सभाओं में खूब गूंजे. वहीं खुद अपने राजनीति के स्टाइल को कायम रखते हुए मुलायम ने कई नारे मंच से दिए, जिनको चुनाव में पार्टी का स्टैंड माना गया.
मुलायम सिंह यादव ने समाजवाद की सियासी परिभाषा गढ़ी. जब भी मुलायम मंच पर होते थे तो सिर्फ अपने विरोधियों पर सियासी वार ही नहीं करते थे बल्कि जनता को अपने अन्दाज में अपने मुद्दे समझाने की कोशिश करते थे. 'शिक्षा-स्वास्थ्य' को आम लोगों की पहुंच में लाने की उनकी कोशिश बताते हुए उनका एक नारा खूब प्रचलित हुआ. उन्होंने ‘रोटी-कपड़ा सस्ती हो, दवा-पढ़ाई मुफ़्ती हो’ का नारा दिया था. मुलायम सिंह यादव जब अपनी राजनीति के शिखर पर थे तब समाज के वंचित लोगों के लिए मंच से एक नारा लगाते थे. वो नारा था ‘शिक्षा होगी एक समान, तभी बनेगा हिन्दोस्तान.’ ये नारा मुलायम के साथ उस दौर में हाथ मिलाने वाले दलित समुदाय के नेता कांशीराम को भी खूब सूट करता था क्योंकि वो भी वंचित वर्ग और दलितों को आगे बढ़ाने को लेकर काम कर रहे थे.
मुलायम सिंह अपने कार्यकर्ताओं से लोहिया-जय प्रकाश नारायण और दूसरे समाजवादी चिंतकों को पढ़ने के लिए भी कहते थे. कई बार जब समाजवादी पार्टी की यूथ विंग लोहिया वाहिनी और स्टूडेंट विंग समाजवादी छात्रसभा मुलायम के किसी कार्यक्रम में पहुंचने पर जोशीले नारे लगाते थे तो मुलायम उनको राम मनोहर लोहिया और अन्य समाजवादी चिंतकों को पढ़ने की सलाह देते थे. लोहिया की राजनीतिक विचारधारा पर समाजवादी राजनीति करने वाले मुलायम सिंह यादव ने स्वास्थ्य, शिक्षा और आम लोगों के लिए महंगाई को प्राथमिकता बताते हुए चुनावी नारे दिए थे.
आज भी लोगों की ज़ुबान पर है वो सबसे चर्चित नारा
मुलायम सिंह यादव ऐसे नेता रहे हैं जिन्होंने राजनीति में शून्य से शिखर तक का सफर तय किया. उनकी लोकप्रियता जब शिखर पर थी तब उनके व्यक्तित्व पर कई नारे उनके कार्यकर्ताओं ने गढ़े. समाजवादी पार्टी के पुराने नेताओं को ही नहीं मुलायम के दौर में छात्र राजनीति करने वाले नेताओं को ये नारे अब भी याद हैं. मुलायम के राजनीति के शिखर पर रहने और उसके बाद उनके बेटे अखिलेश यादव की राजनीति के दौरान भी ये नारे सुनाई पड़ते रहे.उनमें से सबसे चर्चित नारा है- जिसका जलवा कायम है, उसका नाम मुलायम है.
समाजवादी पार्टी की सभाओं पर मंच से ये नारा गूंजता था. पर इस नारे की कहानी भी कम रोचक नहीं. 2004 में मुलायम सिंह यादव प्रयागराज (उस समय इलाहाबाद) पहुंचे. रामबाग के सेवा समिति विद्या मंदिर के मैदान में मुलायम को सुनने के लिए बहुत भीड़ जमा थी. मुलायम का हेलीकॉप्टर पहुंचा तो भीड़ ने नारा लगाया ‘जिसका जलवा कायम है उसका नाम मुलायम है.' भीड़ को देख कर गदगद मुलायम ने मंच में माइक पर पहुंचते ही कहा ‘आप सबकी वजह से ही मेरा जलवा क़ायम है.’ बस फिर क्या था समाजवादी कार्यकर्ताओं ने नारा लगाना शुरू किया ‘जिसका जलवा क़ायम है उसका नाम मुलायम है’. तब से लेकर अभी तक ये नारा समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं का सबसे पसंदीदा नारा बना हुआ है.
नाम मुलायम काम मुलायम
मुलायम ऐसे नेता थे जो अपनी पार्टी के ही नहीं यूपी में समाजवादी राजनीति के भी चेहरे थे. चुनाव में एक और नारा मुलायम के नाम को लेकर बना. ये नारा 2007 के चुनाव में खूब सुनाई पड़ा. मुलायम को उनके कार्यकर्ता मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते थे और चुनावी सभाओं में ये नारा लगाया जाता था. ख़ास तौर पर जुझारू प्रदर्शनों और आंदोलनों को लीड करने वाले समाजवादी पार्टी की यूथ विंग के कार्यकर्ता हर सभा में इस नारे को लगाते देखे जा सकते थे. उस समय अखिलेश यादव युवा फ्रंटल संगठनों के इंचार्ज भी थे. ये नारा था 'नाम मुलायम, काम मुलायम, फिर एक बार मुलायम’
जब अंग्रेजी धुन पर बना गाना
मुलायम सिंह पर 2012 में बना चुनावी गीत और नारा की कहानी रोचक है. शुरुआती दौर से मुलायम सिंह यादव की राजनीति को देखने वाले उनके करीबी रहे और इस लाइन को अपने गीत को लिखने वाले पूर्व सांसद उदय प्रताप सिंह याद करते हुए कहते हैं 'अखिलेश यादव को कोई धुन पसंद आयी. वो उस पर गीत बनाना चाहते थे. अखिलेश जी ने उस धुन पर समाजवादी पार्टी के लिए कोई गीत बनाने की इच्छा ज़ाहिर की. मैंने उनको कहा कि नीरज जी चूंकि गीतकार हैं तो उनसे सम्पर्क करें तो अच्छा होगा. धुन अंग्रेजी गाने की थी नीरज जी ने कहा कि उनको तो कुछ समझ में नहीं आ रहा. फिर अखिलेश जी ने मुझसे कहा तो मैंने वो गीत लिखा था. गीत में समाजवादी पार्टी और समाजवादी लोगों के काम थे. लेकिन गीत की ये लाइन ‘मन से है मुलायम और इरादे लोहा है’ नारे के तौर पर मशहूर हो गया.'
'मिले मुलायम-कांशीराम'... और नारे को लेकर हुआ सबसे ज़्यादा विवाद
भारतीय राजनीति में मंदिर आंदोलन का दौर जितना संवेदनशील था उतने ही नए प्रयोग इस दौर में देखने को मिले. उस दौर में ही मुलायम-कांशीराम साथ आए और बना वो नारा जिसकी वजह से मुलायम सिंह यादव को सबसे ज़्यादा आलोचना का शिकार होना पड़ा. लोगों का ये मानना था कि राम के नाम को लेकर इस तरह का नारा बनाने के पीछे मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति थी जिसका फ़ॉर्म्युला बहुत समय बाद M+Y समीकरण के रूप में समाजवादी पार्टी की प्रमुख रणनीति बन गयी.
दरअसल बहुजन की राजनीति करने और उनको राजनीतिक भागीदारी दिलाने की कोशिश कर रहे कांशीराम और समाजवादी विचारधारा के नाम पर राजनीति करने वाले और समाज में पिछड़ों को आगे लाने का जिम्मा उठाए मुलायम सिंह यादव के साथ आने का दौर था. 90 के दशक का ये वो समय था जब अयोध्या में बाबरी ढांचे के विध्वंस के बाद राजनीति तेज़ थी. रोचक बात तो ये है कि इस नारे को सबसे पहले मंच पर कांशीराम के समर्थक ख़ादिम अब्बास ने लगाया था. वो इन दोनों नेताओं के साथ आने से उत्साहित थे. पर एक बार ये नारा लगा तो ये कार्यकर्ताओं की ज़ुबान पर चढ़ गया. ये नारा था- मिले मुलायम कांशीराम
इसको लेकर ज़बरदस्त विवाद हुआ. विवाद के बाद बात सफ़ाई भी दो गयी कि ‘हवा में उड़ गए है श्रीराम’ का मतलब किसी की भावना को आहत करना नहीं बल्कि बीजेपी के स्लोगन की सियासी काट निकालना था क्योंकि बीजेपी अपने सियासी कार्यक्रम में 'जय श्रीराम' का नारा लगाती थी. मुलायम के करीबी पूर्व सांसद उदय प्रताप सिंह कहते हैं ‘ये नारा दरअसल मंडल और कमंडल (आरक्षण समर्थन और आरक्षण का विरोध)सकी वजह से जन्मा.कांशीराम -मुलायम मंडल के पक्ष में थे. ऐसा लोगों का मानना था कि आरक्षण से ध्यान हटाने के लिए ही बाबरी मस्जिद का प्रकरण लाया गया है. ये उन्हीं लोगों को हवा में उड़ाने की बात थी. ये नारा राम के बारे में नहीं था’
शुरुआती दौर में भी लगे थे मुलायम के नाम पर नारे
मुलायम सिंह पर कुछ ऐसे भी नारे रहे हैं जो आज की पीढ़ी के कार्यकर्ता नहीं जानते. ये शुरुआती दौर के नारे थे. एक कविता ख़ुद उदय प्रताप सिंह ने लिखी थी. कार्यकर्ता उसी कविता की लाइन ‘वीर मुलायम सिंह नेता मजदूरों और किसानों के’ जनसभा में लगाते थे. 1984 में लिखी कविता की एक लाइन भी मुलायम के व्यक्तित्व को लेकर मशहूर हो गई. जब 'एंटी कांग्रेस मूवमेंट' के कई नेताओं को एकजुट करने में मुलायम ने अहम रोल अदा किया था. कार्यकर्ता ये नारा लगाते थे "नाम मुलायम सिंह है लेकिन काम बड़ा फ़ौलादी है सब विपक्ष की ताक़त को एक मंच पर ला दी है."
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