अब संजय निषाद को BJP में दिखने लगे विभीषण! यूपी में एक-एक कर NDA के साथी क्यों हो रहे नाराज?
UP Politics: ‘भाजपा के भीतर कोई विभीषण है, जिसने लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की हार में अपनी भूमिका अदा की है. निषादों को लेकर भी मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष और महामंत्री तक को गुमराह करने वाला कोई विभीषण है, जिसकी वजह से बीजेपी लगभग 40से ज्यादा सीटें हारी है. भाजपा के अंदर जो विभीषण है, उसने मेरे बेटे को लोकसभा चुनाव हरवाया था और अगर उस पर कार्रवाई नहीं हुई तो 2027 में भी नुकसान होगा.’
ये बयान उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री और एनडीए में शामिल निषाद पार्टी के चीफ संजय निषाद का है. उन्होंने सीधे-सीधे योगी सरकार में रहते भाजपा को इशारों ही इशारों में बड़ी चेतावनी जारी कर दी है. कुछ समय पहले संजय निषाद ने यहां तक कह डाला था कि अगर निषादों के साथ ऐसी ही धोखाधड़ी होती रही, तो भाजपा के लिए चुनाव जीतना तक मुश्किल हो जाएगा.
भाजपा सरकार में शामिल एनडीए के घटक दलों के भाजपा सरकार के खिलाफ ये तेवर नए नहीं हैं. लोकसभा चुनाव 2024 के बाद से ही उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के खिलाफ लगातार सरकार में शामिल एनडीए घटक दलों के नेता अपनी आवाज उठा रहे हैं और भाजपा को खुलेआम चेतावनी दे रहे हैं.
आशीष पटेल और अनुप्रिया पटेल भी तेवर दिखा रहे
तेवर दिखाने वालों की लिस्ट में संजय निषाद का नाम अकेला नहीं है. अपना दल (एस) की नेता और मोदी कैबिनेट में शामिल अनुप्रिया पटेल हो या उनके पति और योगी सरकार की कैबिनेट में शामिल आशीष पटेल, दोनों ही यूपी की योगी सरकार को सख्त तेवर दिखा रहे हैं. जो राजनीति आशीष पटेल इस समय कर रहे हैं, उसे देख कर ऐसा लग रहा है कि जैसे आशीष पटेल ने अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
जहां अनुप्रिया पटेल ने आरक्षण और नियुक्तियों को लेकर भाजपा सरकार को धेरा तो वहीं अब आशीष पटेल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के करीबियों और यूपी सरकार के बड़े विभागों के अध्यक्षों तक का खुलेआम नाम लेकर गंभीर आरोप लगा रहे हैं. यहां तक की इस बार उन्होंने यूपी सरकार के मीडिया सलाहकार मृत्युंजय सिंह और सूचना निदेशक शिशिर सिंह पर भी निशाना साधा. यूपी एसटीएफ तो पहले से ही उनके निशाने पर है. ये हाल तब हैं जब आशीष पटेल ने कल यानी रविवार के दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की. दरअसल आशीष पटेल पर विधायक पल्लवी पटेल ने घोटाले का आरोप लगाया है. इसी को लेकर आशीष पटेल मोर्चा खोले हुए हैं और यूपी सरकार के प्रमुख विभागों और अधिकारियों को ही घेर रहे हैं.
क्या बिखर रहा है भाजपा का गैर यादव ओबीसी गठजोड़?
साल 2024 में हुए हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को सबसे बड़ा झटका उत्तर प्रदेश ने ही दिया. भाजपा नीत एनडीए को 36 सीट ही मिल पाई तो दूसरी तरफ सपा नेतृत्व में इंडिया गठबंधन 43 सीट कब्जा करने में कामयाब रही. उस दौरान माना गया कि आरक्षण खत्म करने और संविधान बदलने का नैरेटिव ने भाजपा का यूपी में ऐसा हाल किया. माना गया कि आरक्षण और संविधान के नैरेटिव की वजह से दलित और पिछड़ी जातियां भाजपा से दूर हो गईं. लोकसभा चुनाव के बाद से ही एनडीए में शामिल ओबीसी-दलित दलों के नेता अपने तेवर दिखा रहे हैं और भाजपा को घेरने की कोशिश कर रहे हैं.
आज तक की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा को कुर्मी-कोइरी से 61 प्रतिशत समर्थन मिला. मगर साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव से अगर तुलना की जाए तो कुर्मी-कोइरी की तरफ से 19 प्रतिशत का नुकसान भाजपा को 2024 में उठाना पड़ा. 2024 के चुनाव में गैर-यादव ओबीसी से 59 प्रतिशत समर्थन भाजपा को मिला. मगर 2019 लोकसभा चुनाव की तुलना में गैर-यादव ओबीसी का समर्थन भी 13 प्रतिशत घट गया. गैर-जाटव दलितों से 29 प्रतिशत समर्थन भाजपा को प्राप्त हुआ. मगर 2019 लोकसभा चुनाव की तुलना में इसमें भी 19 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई. यूपी में भाजपा को साल 2019 लोकसभा चुनाव की तुलना में 8.61% प्रतिशत कम वोट मिला, जिसका असर सीटों की संख्या पर साफ देखा जा सकता था.
2022 में भी मिली थी भाजपा को बड़ी चुनौती
ये पहला मौका नहीं है जब भाजपा को एनडीए में शामिल घटक दलों से इस तरह की चुनौती मिल रही है. साल 2022 यूपी विधानसभा चुनाव में भी योगी सरकार में शामिल दलित और ओबीसी नेताओं ने चुनाव से पहले पाला बदल लिया था और योगी सरकार पर आरक्षण विरोधी-संविधान विरोधी होने का आरोप लगाया था. इन नेताओं में ओम प्रकाश राजभर और स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेता शामिल थे. उस दौरान भी इसे योगी सरकार के लिए बड़ा झटका माना गया था. मगर विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ही जीत हासिल की थी. मगर उसकी सीट 2017 की तुलना में कम हो गईं थी.
अमित शाह की सोशल इंजीनियरिंग ने भाजपा को यूपी में किया था मजबूत
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में ऐतिहासिक जीत हासिल की थी. इसके बाद से ही भाजपा यूपी में मजबूत होने लगी. इससे पहले तक सपा-बसपा के बीच ही मुख्य सियासी मुकाबला माना जाता था. यूपी में भाजपा को मजबूत करने और साल 2017 में हुई ऐतिहासिक जीत का श्रेय अमित शाह की रणनीति और सोशल इंजीनियरिंग को जाता है. अमित शाह ने गैर यादव ओबीसी जातियों को भाजपा के साथ जोड़ा था और एक मजबूत वोटर समूह बनाया था. अमित शाह ने ही निषाद पार्टी, अपना दल (एस) सुहेलदेव समाज पार्टी जैसी पार्टियों को एनडीए में शामिल किया था और गैर जाटव
सियासी पंडितों की मानों तो साल 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को गैर यादव ओबीसी वोटर और गैर जाटव दलित वोटर ने झटका दिया है. इसका असर साफ देखने को मिल रहा है. इसी का ही परिणाम है कि निषाद पार्टी के संजय निषाद हो या अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल और आशीष पटेल के ये तेवर देखने को मिल रहे हैं.
माना ये भी जा रहा है कि ये नेता अपने समर्थकों और जातियों को संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि वह आरक्षण और संविधान के साथ हैं और उसको लेकर किसी भी तरह का समझौता नहीं होने देंगे. ये दल भाजपा के साथ रहकर भी सेफ सियासी जोन में जाने की कोशिश लगातार कर रहे हैं.
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