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कहानी 'बजाज चेतक' की, जिसके लिए लोगों को 10 साल करना पड़ता था इंतजार, कैसे हुआ अचानक बंद....

    

कहानी 'बजाज चेतक' की, जिसके लिए लोगों को 10 साल करना पड़ता था इंतजार, कैसे हुआ अचानक बंद

Rahul Bajaj- An Extraordinary Life: भारत के दिग्गज उद्योगपतियों में से एक राहुल बजाज का लालन-पालन खास ढंग से हुआ था. जिसकी वजह से ही संभवत: जीवन और व्यवसाय के प्रति उनके और उनके परिवार के नजरिये में एक समरूपता थी. 

उनके दादा जमना लाल बजाज दक्षिण अफ्रीका से महात्मा गांधी की स्वदेश वापसी के बाद उनके शुरुआती सहकर्मियों मे से एक थे. उनके पिता ने भी यही मार्ग चुना और अपने जीवन का बड़ा हिस्सा महाराष्ट्र के आश्रम में व्यतीत किया. उनकी मां सावित्री भी स्वतंत्रता संघर्ष में सक्रिय रहीं और उन्हें जेल जाना पड़ा. राहुल भले ही एक पारंपरिक मारवाड़ी परिवार में पले बढ़े उन पर गांधीवादी विचारों का काफी असर रहा. जब उन्होंने परिवार का बिजनेस संभाला तो बजाज समूह को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने में अहम योगदान दिया. बजाज ऑटो को दुनिया की चौथी सबसे बड़ी दुपहिया और तिपहिया वाहन निर्माता कंपनी का दर्जा हासिल है. इन्हीं राहुल बजाज पर एक किताब आई है, 'राहुल बजाज, एक बेमिसाल जिंदगी.' इसे लिखा है गीता पिरामल ने और पब्लिश किया है पेंगुइन रैंडम हाउस इंप्रिंट ने. यह किताब राहुल बजाज की जीवनी है. इसमें उनकी जिंदगी के सभी ब्योरे को सिलसिलवार तरीके से पेश किया गया है.

बजाज स्कूटर को चाहिए था नया नाम
'राहुल बजाज, एक बेमिसाल जिंदगी.' के अनुसार पियाजिओ के प्रस्थान के बाद बजाज के स्कूटर को एक नए नाम की जरूरत थी. बजाज बताते हैं, "एक बार जब मुझे ये अहसास हो गया कि सरकार पियाजिओ के साथ हुए समझौते का नवीनीकरण नहीं करने जा रही है तो मुझे लगा कि अपने स्कूटरों और एपीई तिपहिया वाहनों के लिए वेस्पा का ब्रांड नाम छोड़ना पड़ेगा. उसी तरह इस बात को लेकर भी मेरी राय स्पष्ट थी कि हमें अपने वाहनों के लिए 'बजाज' का ब्रांड नाम रखना चाहिए. मैंने काकाजी से इस पर चर्चा की, बोर्ड के समक्ष लेकर गया और हमारी विज्ञापन एजेंसी लिंटास से भी विचार-विमर्श किया, जिसके प्रमुख अलीक पद्मसी थे."

'बजाज चेतक', दो शब्दों वाला नाम
बजाज ने आखिरकार दो शब्दों वाले नाम का चयन किया- 'बजाज चेतक', जो ऐतिहासिक चरित्न महाराणा प्रताप सिंह के विश्वासी घोड़े के नाम पर था और जिसने 21 जून, 1576 में हल्दीघाटी के युद्ध में अपने मालिक की जान बचाई थी. बजाज बताते हैं, "नाम बदलने में कोई समस्या नहीं थी, क्योंकि बजाज स्कूटरों और तिपहिया वाहनों की प्रतीक्षा सूची की अवधि लगभग दस साल की थी. बड़ी आसानी से हमारे ब्रांड ने वेस्पा का स्थान ले लिया." स्कूटर के शौकीन ब्लॉगर अभिलाष गौर याद दिलाते हैं, "1970 के दशक में स्कूटर खरीदना बहुत जटिल था. आपको एक डीलर को एक आवेदन देकर ये बताना होता था कि ये स्कूटर आपके व्यक्तिगत उपयोग के लिए होगा. इसके बाद बचत खाता खुलवाने के लिए डाक घर जाना होता था और उस खाते में 250 रुपये का सिक्योरिटी डिपॉजिट कराना होता था. डाकघर आपको एक पासबुक देता था, जिसे डीलर के पास जमा करना होता था. यही पासबुक आपके स्कूटर खरीदने की इच्छा का प्रमाण होता था. इसके बाद आपको अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता था. खुशकिस्मती वाले किसी दिन डीलर आपको ये पासबुक वापस कर देता था और आपको 250 रुपये निकालने और स्कूटर की पूरी कीमत का भुगतान करने के लिए अधिकृत कर देता था. अगर आपने शादी के पहले स्कूटर खरीदने के लिए आवेदन दिया होगा तो स्कूटर आपको तब मिलता था जब आपके बच्चे स्कूल जाने लायक हो जाते थे."


बजाज चेतक जल्द ही आम लोगों के बीच लोकप्रिय हो गया.

ब्लैक में मिलता था स्कूटर
जिस ग्राहक को स्कूटर का आवंटन हो जाता था, वो खुद को बहुत खुशकिस्मत समझता था. वह अगले ही पल इस स्कूटर को दोगुने दाम पर बेचकर मुनाफ़ा कमा सकता था. मध्य वर्गीय परिवारों की शादियों में दहेज के रूप में बजाज स्कूटर की मांग का चलन होने लगा था. बारी का इंतजार किए बगैर स्कूटर खरीदने के इच्छुक ग्राहकों से डीलर अनधिकृत रूप से बड़ी राशि की वसूली करते थे. निस्संदेह, जो इंतजार नहीं कर सकते थे, उन्हें काला बाज़ार से बजाज चेतक खरीदने के लिए अतिरिक्त राशि का भुगतान करना पड़ता था.

लंबी लाइन से बचने को घुमावदार व्यवस्था
बजाज याद करते हुए बताते हैं, "कुछ लोग ही लंबी लाइन को नजर-अंदाज कर सकते थे. सरकार ने विदेशी मुद्रा वाली योजना तैयार की, जिसमें ये प्रावधान था कि अगर ग्राहक बजाज चेतक खरीदने के लिए विदेशी मुद्रा में भुगतान करे तो उसे पहले स्कूटर मिल सकता है." इस आइडिया को बजाज अमेरिका के मुख्यालय में भी काफी पसंद किया गया, जिसके प्रमुख उस दौरान डेविड जोन्स थे. हालांकि, अमेरिका में चेतक के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया ज्यादा उत्साहवर्द्धक नहीं थी. जोन्स बताते हैं, "परिणामस्वरूप, बजाज ने एक नई योजना शुरू की, जिसके तहत अमेरिका में रहने वाले भारतीय डॉलर में भुगतान करके चेतक खरीद सकते थे और उसे दोबारा-निर्यात करके भारत में अपने रिश्तेदारों को भेज सकते थे. इस तरह स्कूटर पाने वाले लंबी प्रतीक्षा सूची से बच सकते थे और बजाज विदेशी मुद्रा जुटा सकते थे."

कहां से लिया हमारा बजाज का लोगो
बजाज बताते हैं, "बजाज' का लोगो वास्तव में बजाज इलेक्ट्रिकल्स से लिया गया था. बजाज इलेक्ट्रिकल्स ने अपनी 25वीं वर्षगांठ मनाने के मौके पर रेडियो लैंप वर्क्स के स्थान पर अपना नाम बजाज इलेक्ट्रिकल्स रखने का निर्णय लिया. वर्ष 1962 में अपना नाम बदलने के लिए इसने एक अखिल भारत स्तर की एक प्रतियोगिता का आयोजन भी किया था. काकाजी ने सैकड़ों प्रविष्टियों में से लोगो का चयन किया. पुरस्कार विजेता लोगो को हीरोज पब्लिसिटी ने तैयार किया था और बजाज ऑटो ने भी इसे 1962 में इसे अपने कॉरपोरेट उपयोग के लिए अपना लिया. हमें एक मोनोग्राम या प्रतीक की जरूरत थी और हमने विनायक पुरोहित को 'बी' को हेक्साजोन के रूप में डिजाइन करने का काम सौंपा. 1970 और 1980 के दशक में हमने स्कूटरों के तीन मॉडल तैयार किए, जिसमें पहला था बजाज 150 और दूसरे और तीसरे थे बजाज चेतक और बजाज सुपर."


बजाज स्कूटर के प्लांट में राहुल बजाज.

'यू जस्ट कांट बीट ए बजाज'
नाम परिवर्तन की प्रक्रिया के बाद विज्ञापनों के जरिये जोर-शोर से इसका प्रचार किया गया. 'हमारा बजाज' और 'यू जस्ट कांट बीट ए बजाज' जैसे स्लोगन इस कंपनी के प्रतीक बन गए. एक कामकाजी घोड़े का इसका रूप, जायज कीमत और कम मेंटेनेंस कॉस्ट के कारण बजाज स्कूटर मध्यम वर्गीय परिवारों में पूरी तरह छा गया. डिस्ट्रीब्यूशन में कोई समस्या नहीं थी और कीमत भी जायज थी. सामाजिक टिप्पणीकार संतोष देसाई लिखते हैं, "हमारा बजाज अभियान इतना अच्छा चला कि अगर मध्य वर्ग के किसी व्यक्ति को किसी उत्पाद के रूप में पुनर्जन्म लेना होता तो इस बात की संभावना ज्यादा थी कि वह बजाज स्कूटर के रूप में दुनिया में अवतरित होना चाहता. बजाज स्कूटर की पहचान ऐसी बन गई थी, जिसमें आगे की सीट पर ग्रे रंग की सफारी पहने हल्की तोंद वाला अनजाना, मगर समृद्ध जैसा दिखता एक व्यक्ति जिसकी बीवी थोड़े कष्ट के साथ उसके पीछे बैठी होती. दोनों के बीच में गुड़िया दबी होती और चीकू स्कूटर पर सामने खड़ा रहता."यह एक बहुपयोगी वाहन था, जिसमें ज्याादा तामझाम नहीं था, वो हमारी जिंदगी में रचा-बसा था.' और कई फिल्म निर्देशकों ने फिल्मों में इसका इस्तेमाल भी किया.

चेतक का उत्पादन बंद
आकुर्दी में बनने वाले शुरुआती स्कूटर 150 सीसी के 'वेस्पा स्प्रिंट' पर आधारित थे, जिसमें टू-स्ट्रोक इंजन लगा था, लेकिन यहां इसकी क्षमता थोड़ी कम यानी 145 सीसी' रखी गई थी. पियाजिओ ने 1965 से 1976 के बीच विश्व स्तर पर वेस्पा स्प्रिंट का ही निर्माण किया था. पियाजिओ के साथ तकनीकी करार 1971 में खत्म हो गया, क्योंकि इंदिरा गांधी सरकार ने इस करार की अवधि बढ़ाने से इनकार कर दिया था. बजाज ने उसी उत्पाद में मामूली हेर-फेर करके बजाज चेतक ब्रांड बनाया. कंपनी के स्कूटर की भारी मांग को देखते हुए बजाज ऑटो ने पूरी तरह से नया डिजाइन तैयार करने की जरूरत कभी महसूस नहीं की और पुराने वेस्पा की डिजाइन में ही थोड़ा-बहुत बदलाव करके काम चलाते रहे. चेतक का उत्पादन तीस साल तक सुगमता से जारी रहा. इसकी एसेंबलिंग के काम में लगे कर्मचारियों को एक काम से दूसरे काम के बीच में दो सेकंड से ज्यादा राहत का मौका नहीं मिल पाता था.

इसके अलावा, बजाज चेतक की प्रतीक्षा अवधि करीब दस साल की थी और इस स्कूटर के बारे में ग्राहकों की राय के आकलन की जरूरत बजाज को नहीं थी. इसमें तकनीकी सुधार को लेकर बजाज का रवैया अड़ियल था और वह इससे इनकार करते रहे. वर्ष 1970 से 1980 के बीच देश भर में बिकने वाले स्कूटरों में 60 फ़ीसदी हिस्सा बजाज चेतक का था, लेकिन इसमें इलेक्ट्रिक इग्निशन नहीं था और उसे किक मार कर स्टार्ट करना पड़ता था. लंबे समय तक शोध एवं विकास (आर एंड डी) पर खर्च मामूली यानी करीब एक प्रतिशत था. किसी नए उत्पाद के विकास में लगने वाला औसत समय चार-पांच साल था, जबकि जापानी प्रतिद्वंद्वी इस काम में दो से तीन साल का समय लगाते थे.

40 साल तक रहा वहीं रंग रूप
मैनेजमेंट के प्रोफेसर हरीश बी. नायर दुखी होकर बताते हैं, "चालीस साल तक चेतक का रंग-रूप, गुणवत्ता और स्टाइल वही रही. 1990 के दशक में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के बावजूद स्कूटर क्षेत्र में शुरुआत में ज्यादा प्रतिस्पर्धा नहीं थी. एपीआई के लैंबी को ज्यादा कामयाबी नहीं मिली थी. काइनेटिक होंडा ने गियररहित स्कूटर की वजह से समृद्ध वर्ग में थोड़ी जगह बनाई थी. एक और बढ़ता हुआ क्षेत्र स्कूटरेट का था, जिस पर टीवीएस स्कूटी का वर्चस्व था." ज्योति कैंठ और तन्मय माथुर जैसे निष्ठावान दोस्त ने काफी साथ दिया. वे बताते हैं, "बजाज ने जब पहला घरेलू स्तर पर निर्मित स्कूटर ब्रांड तैयार किया तो इसके उपयोगी डिजाइन और वाजिब क़ीमत ने इसे कंपनी का कामयाब उत्पाद बना दिया. बजाज का नाम स्कूटर का पर्यायवाची बन गया था, जैसे- कोलगेट का टूथपेस्ट के लिए."

फिर आया मोटर साइकिलों का दौर
और तब वो वक्त आया जब जापानी कंपनियां अपने मोटरसाइकिलों के साथ भारत पहुंची. राजीव याद करते हुए बताते हैं, "मैं 1984-1988 के दौरान पुणे में एक इंजीनियरिंग कॉलेज में था. स्कूल और कॉलेज का मेरा प्रिय मित्र जोहेर एक चेतक स्कूटर खरीदना चाहता था, इसकी प्रतीक्षा अवधि दस साल की थी. लेकिन मेरे पास अधिकार था और वह लगातार याचना कर रहा था. मैंने पिताजी से बात की, जिन्होंने ये कहते हुए बजाज सुपर की सलाह दी कि दोनों एक ही चीज हैं. मैंने जaर देकर कहा कि जोहेर चेतक चाहता है. चेतक आने में कुछ दिनों का समय लगने वाला था. वर्ष 1984 में टीवीएस ने एक मोटरसाइकिल लांच किया और जोहेर गया और इंड-सुजुकी मोटरसाइकिल खरीद लाया… मेरा सबसे प्यारा मित्र जो चेतक के लिए इतना बेकरार था, वह अचानक मोटरसाइकिल खरीद लाया." बजाज स्वीकार करते हैं, "हमें पुराने दिनों को ध्यान में रखते हुए दो-पहिया वाहनों के बाजार में आ रहे बदलाव पर नजर डालना चाहिए था जब 1999-2000 में ये स्कूटर से मोटरसाइकिल केंद्रित होने लगा था. भले ही प्रतीक्षा सूची खत्म हो गई थी, लेकिन वर्ष 2000 तक बजाज स्कूटरों की बिक्री अच्छी-खासी थी. मुझे ये कहने में कोई हिचक नहीं है कि 2001 का साल बजाज ऑटो के लिए बहुत खराब रहा था, भले ही करों के भुगतान के बाद कंपनी का मुनाफा पिछले वर्षों के मुकाबले घटने के बावजूद अपने प्रतिस्पर्धियों से ज्यादा था. हमने वर्ष 2005 में चेतक का उत्पादन बंद कर दिया और वर्ष 2009 में स्कूटरों का."

स्कूटर बंद हुआ तो उमड़ी भावनाएंजब बजाज ऑटो ने स्कूटर उत्पादन बंद करने की घोषणा की तो देश भर में भावनाओं का ज्वार उमड़ पड़ा. हर उस भारतीय के पास सुनाने के लिए बजाज चेतक स्कूटर से जुड़ी अनगिनत कहानियां थीं, जिसने कभी बजाज चेतक को अपनाया था. मेडिकल के एक छात्र ने बताया कि कैसे उस दिन पिताजी के स्कूटर में उसका भरोसा बढ़ गया जब वह सीबीएसई की मेडिकल प्रवेश परीक्षा देने मथुरा से दिल्ली पहुंचा था. उसने कहा, "उस दौरान बस हड़ताल चल रही थी, लेकिन मेरे पिताजी को भरोसा था कि स्कूटर उन्हें मंजिल तक जरूर पहुंचा देगा.' शादी के बाद एक दूल्हा अपनी नई-नवेली दुल्हन को लेकर सामान के साथ चेतक स्कूटर से अलीगढ़ से हिसार पहुंच गया. उसका कहना था, "मुझे भरोसा था कि ये मुझे धोखा नहीं देगा. मेरे पिताजी जिंदगीभर बजाज-कब पर चले जब तक कि 75 वर्ष की उम्र में उनका निधन नहीं हो गया."

क्या बजाज ऑटो ने स्कूटर निर्माण को बंद करके क्या कोई गलती की? उम्मीदों के विपरीत स्कूटर ने अपना अंत स्वीकार करने से इनकार कर दिया. हालांकि, बजाज ऑटो टीम को ये पता करने में थोड़ा समय लगा कि वे अपनी जगह कहां देखते हैं. बजाज चेतक को बड़ी सुगमता से नए रूप-रंग वाले बैटरी-संचालित मॉडल में तब्दील कर दिया गया. इसका उत्पादन 25 सितंबर, 2019 से चाकन प्लांट में शुरू हुआ. 16 अक्टूबर, 2019 बजाज चेतक को नए मॉडल अर्बनाइट ईवी के रूप में लांच किया गया.

01 जनवरी, 2021 के शुक्रवार के दिन अपने संचालन के 75वें वर्ष में एनएसई में बजाज ऑटो का शेयर मूल्य 3479 रुपये पर बंद हुआ, जिससे बाजार में इसका पूंजीकरण 1,00,670.76 करोड़ रुपये (13.6 अरब डॉलर) हो गया. बजाज ऑटो न सिर्फ दो पहिया वाहन बनाने वाली विश्व की सर्वाधिक मूल्यांकन वाली कंपनी बन गई, बल्कि इसने दो-पहिया बनाने वाली विश्व की तीसरी बड़ी और तिपहिया बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी का भी खिताब हासिल कर लिया.

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