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'खून के प्यासे' कविता गलत नहीं तो फिर नूपुर शर्मा के वक्त...', सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्या बोल रहे लोग?

 

'खून के प्यासे' कविता गलत नहीं तो फिर नूपुर शर्मा के वक्त...', सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्या बोल रहे लोग?

Nupur Sharma: सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस के राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ दर्ज FIR को 28 मार्च को रद्द कर दी है। गुजरात पुलिस ने ये FIR सांसद प्रतापगढ़ी के इंस्टाग्राम पर पोस्ट 'ऐ खून के प्यासे बात सुनो' कविता को लेकर दर्ज की थी।

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले देते हुए कहा कि 'खून के प्यासे' कविता में कुछ गलत नहीं हैं। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने फैसले देते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर जोर दिया।

जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने कहा, ''कोई अपराध नहीं हुआ है। जब आरोप लिखित रूप में हों, तो पुलिस अधिकारी को इसे ध्यान से पढ़ना चाहिए, बोले गए शब्दों का सही अर्थ समझना जरूरी है। कविता में हिंसा का कोई संदेश नहीं है, बल्कि यह अहिंसा को बढ़ावा देती है।''

जस्टिस अभय एस ओका ने कहा, ''भले ही बहुत से लोग किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा व्यक्त किए गए विचारों को नापसंद करते हों, लेकिन व्यक्ति के विचारों को व्यक्त करने के अधिकार का सम्मान और संरक्षण किया जाना चाहिए। कविता, नाटक, फिल्म, व्यंग्य और कला सहित साहित्य मनुष्य के जीवन को और अधिक सार्थक बनाता है।"

सांसद प्रतापगढ़ी पर SC के फैसले के बाद लोगों को क्यों याद आईं नूपुर शर्मा?

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद सोशल मीडिया एक्स पर भारतीय जनाता पार्टी (BJP) की पूर्व नेता नूपुर शर्मा ट्रेंड में आ गई हैं। सोशल मीडिया पर लोग लिख रहे हैं कि ऐसा क्यों लग रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले अब सबके लिए एक समान नहीं रहे हैं। असल में जून 2022 में टीवी चैनल पर डिबेट में नूपुर शर्मा ने इस्लाम के आखिरी पैगंबर, पैगबर मोहम्मद पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। जिसके बाद नूपुर शर्मा को कूटनीतिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा था।

सोशल मीडिया पर अब लोग कह रहे हैं कि नूपुर शर्मा मामले में तो सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की थी और इमरान प्रतापगढ़ी की कविता में कोर्ट को कुछ विवादित नहीं लगता। इसी मुद्दे को लेकर सोशल मीडिया पर कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठाए हैं।

सोशल मीडिया पर क्या बोले लोग?

मेजर डॉ सुरेन्द्र पूनिया ने लिखा, ''सुप्रीम कोर्ट के अनुसार ''नूपुर शर्मा को अपने विचार व्यक्त करने का कोई अधिकार नहीं है, भले ही वह किसी किताब से तथ्य बोलें'' लेकिन "ऐ खून के प्यासे बात सुनो... लाश बिछा देंगे" गाना -बजाना-सुनाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता... है क्योंकि वो इमरान प्रतापगढ़ी ने शेयर किया है।''

पत्रकार दीपक चौरसिया लिखते हैं, ''ए खून के प्यासों बात सुनो"... इस कविता को पोस्ट करने पर इमरान प्रतापगढ़ी पर हुई FIR को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द करने के आदेश दे दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि भले ही किसी को पसंद ना आए लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी सबको मिलनी चाहिए। काश नूपुर शर्मा की अभिव्यक्ति की आजादी भी उन्हें याद रहती।''

यूजर @shashank_ssj लिखते हैं, ''दो भारत...नूपुर शर्मा और इमरान प्रतापगढ़ी के साथ भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अलग-अलग व्यवहार किया। नूपुर शर्मा को अभी भी धमकियों का सामना करना पड़ रहा है। इमरान प्रतापगढ़ी का मामला सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।''

एक यूजर ने सुप्रीम कोर्ट के दोनों टिप्पणियों को साझा किया है। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने जो नूपुर शर्मा के मामले में कहा था वो भी...और अब कोर्ट ने सांसद प्रतापगढ़ी मामले पर जो कहा है वो भी...। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा के मामले में कहा था कि ''देश में जो कुछ हो रहा है, उसके लिए वह अकेले ही जिम्मेदार हैं। उनकी बेबाक जुबान ने पूरे देश को आग में झोंक दिया है। उन्हें पूरे देश से माफी मांगनी चाहिए। क्या उन्हें कोई खतरा है या वे सुरक्षा के लिए खतरा बन गई हैं? उनकी टिप्पणी उदयपुर में हुई दुर्भाग्यपूर्ण हत्या के लिए जिम्मेदार है।''

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