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जब जीभ काटने के बाद औरंगजेब ने डाला इस्लाम कबूल करने का दबाव, संभाजी ने दिया झकझोरने वाला जवाब- बादशाह अपनी बेटी भी दे तो.....

  

जब जीभ काटने के बाद औरंगजेब ने डाला इस्लाम कबूल करने का दबाव, संभाजी ने दिया झकझोरने वाला जवाब- बादशाह अपनी बेटी भी दे तो...

Chhatrapati Sambha Ji Maharaj: भारत में जब इस्लाम की लपलपाती खूनी तलवारें धर्म परिवर्तन के लिए आगे बढ़ रहीं थीं तो कुछ ही योद्धा इतिहास में थे जिन्होंने उन तलवारों का न सिर्फ पुरजोर विरोध किया बल्कि उनसे दो-दो हाथ कर उन्हें अपने-अपने इलाकों से दूर भी रखा था।

इन वीरों में अगर हम नाम लें तो बप्पा रावल, महाराणा प्रताप, बंदा सिंह बहादुर, गुरु गोविंद सिंह, छत्रपति शिवाजी और उनके बेटे छत्रपति संभाजी का नाम सबसे पहले आता है। ये वो वीर थे जिन्होंने अपने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए लेकिन अपने जीते सनातन धर्म पर आंच नहीं आने दी। संभाजी को औरंगजेब ने मारने से पहले उन्हें 40 दिनों तक बंदी बनाकर रखा था और तमाम असहनीय यातनाएं दी थीं ताकि वो इस्लाम धर्म स्वीकार कर लें।

संभाजी पर अनेको यातनाएं करने के बाद मुगल सम्राट औरंगजेब थक गया और उसने क्रोधित होकर छत्रपति संभाजी की जुबां काट लेने का आदेश दे दिया। औरंगजेब ने सोचा कि शायद जुबां कटने के भय से छत्रपति संभाजी महाराज इस्लाम स्वीकार कर लेंगे लेकिन उसका ये मिथक भी टूट गया जब उसके सैनिकों ने उनकी जीभ काट ली और फिर भी उन्होंने इस्लाम स्वीकार नहीं किया था। ब्रिटिश इतिहासकार डेनिश किनकेड ने अपनी चर्चित किताब 'शिवाजी: द ग्रैंड रिबेल' में इस बात का जिक्र किया है कि जब मुगल सम्राट ने संभा जी की जुबां काट ली और फिर उन्हें उनकी जान बख्शने के लिए एक बार फिर से इस्लाम धर्म स्वीकार करने का आदेश दिया तो संभा जी ने इशारे से कलम और कॉपी मंगवाई। चूंकि उनकी जुबां कट चुकी थी और वो बोल नहीं सकते थे इसलिए उन्होंने कलम और कॉपी मंगवाकर मुगल सम्राट को इसका जवाब देते हुए लिखा, 'अगर मुगल बादशाह अपनी बेट भी दे दें तो भी मैं इस्लाम स्वीकार नहीं करुंगा।'


जानिए क्या हुआ था उस दिन जब औरंगजेब ने संभाजी की हत्या करवाई थी

ब्रिटिश इतिहासकार डेनिश किनकेड की किताब 'शिवाजी: द ग्रैंड रिबेल' के अनुसार, बंदी बनाए गए छत्रपति संभाजी महाराज को इस्लाम कबूलने से इनकार करने के बाद उनके कवि और दोस्त कलश को विदूषकों (जोकरों) वाले कपड़े पहनाकर पूरे शहर में परेड करवाई गई। इस दौरान पूरे रास्ते उन लोगों पर मुगलों की भीड़ ने पत्थर मारे, भाले चुभाए गए। उसके बाद एक बार फिर से उन्हें इस्लाम कबूलने के लिए कहा गया। फिर से इनकार करने पर और और ज्यादा यातनाओं के बाद उनकी ज़ुबां कटवा दी गई। आंखें और निकाल लिए गए। इसके बाद उनके एक-एक अंग को काटा गया और आखिर में शरीर के कई टुकड़े कर दिए गए। इसके बाद भी औरंगजेब का मन नहीं भरा तो उसने 11 मार्च, 1689 को संभाजी के सिर को कलम कर दिया।

संभाजी की हत्या पर भी औरंगजेब को रहा इस बात का मलाल

संभाजी महाराज ने मुगल सम्राट को झकझोर देने वाला जवाब दिया वो भी ऐसे समय में जब वो मौत के मुहाने पर खड़े थे। इस जवाब के बाद औरंगजेब ने उनका सिर कलम करवा दिया और फिर शरीर के एक-एक अंग के कई टुकड़े कर वहां से कुछ ही दूरी पर बहने वाली तुलापुर नाम की नदी में फिंकवा दिया। बताया जाता है कि जब छत्रपति संभाजी महाराज के टुकडे तुलापुर की नदी में फेंक दिए गए तो उस किनारे रहने वाले लोगों ने उनके शव के टुकड़ों को फिर से इकठ्ठा किया और उन्हें सिलकर जोड़कर दिया और फिर उनका विधि पूर्वक अंतिम संस्कार किया गया था। आज के समय उस स्थान को 'शिवले' के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि संभाजी के शव के टुकड़े तुलापुर की नदी में फेंक दिए गए थे, जहां से निकालकर कुछ लोगों ने उनका अंतिम संस्कार किया था। संभाजी की हत्या के बाद औरंगजेब ने कहा था कि अगर मेरे चार बेटों में से एक बेटा भी तुम्हारे जैसा होता तो शायद पूरे हिन्दुस्तान पर मुगलों का परचम लहरा रहा होता।

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