अमेरिका के NATO से हटने पर पुतिन के टारगेट पर होंगे ये देश, यूरोप में कोहराम मचना तय..

यूक्रेन की सुरक्षा के लिए यूरोपीय देश एकजुट हो रहे हैं. अब यूक्रेन को सैन्य मदद तेजी से भेजी जा रही है, जिससे रूस का मुकाबला किया जा सके, लेकिन अमेरिका की तरफ से कुछ ऐसे संकेत मिले हैं, जिससे यूरोप में कोहराम मच गया है.
ऐसी संभावना है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप नाटो से अमेरिका के अलग होने का ऐलान कर सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो रूस के लिए यूरोप में विध्वंस मचाने का मौका मिल जाएगा क्योंकि अमेरिका विहीन नाटो बेहद कमजोर हो जाएगा और फिर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन रूस के विस्तार के लिए यूक्रेन के बाद दूसरे देशों पर हमला कर सकते हैं.
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की का धोखे से ट्रंप का पारा बढ़ गया है. अब यूक्रेन के सर्वनाश के लिए जेलेंस्की खुद ही जिम्मेदार होंगे क्योंकि अमेरिका यूरोप में बड़ा खेल करने जा रहा है, जिससे पुतिन को जबरदस्त फायदा हो सकता है. अब ये समझिए ट्रंप क्या करने जा रहे हैं…
रूस के आक्रमण से कौन बचाएगा?
ट्रंप अमेरिका को नाटो से अलग करने का ऐलान कर सकते हैं, जबकि नाटो को फंडिंग रोकने के लिए पहले ही कह चुके हैं. यूक्रेन की सैन्य मदद रोकी जा चुकी है. यूरोप से न्यूक्लियर हथियार हटा सकता है. यूरोपीय देशों से डिफेंस सिस्टम भी हटा सकता है.
अगर ऐसा हुआ तो अमेरिका विहीन नाटो बेहद कमजोर हो जाएगा. ऐसे में पुतिन के लिए मौका होगा कि वो यूक्रेन का सर्वनाश करें और फिर आगे दूसरे देशों पर हमला करें. पुतिन के टारगेट पर ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, पोलैंड होंगे. इसके अलावा बाल्टिक और नॉर्डिक देश. लिथुआनिया, लातविया, एस्टोनिया, फिनलैंड स्वीडन और नॉर्वे भी शामिल हैं. वहीं, उन देशों को भी रूस टारगेट करेगा, जो यूक्रेन को हथियार देने का समर्थन करते रहे हैं. अब पुतिन के रुख को देखते हुए नाटो में खलबली मच गई है क्योंकि रूस के आक्रमण से कौन बचाएगा. अमेरिका के पीछे हटने से यूरोपीय देश बड़े संकट में घिर गए हैं.
अमेरिका ने संकेत दे दिया है कि अब यूरोप में बड़ा घमासान होने जा रहे हैं, जिसमें सीधे तौर पर रूस और नाटो में टकराव होना तय माना जा रहा है, जबकि अमेरिका जिस ओर झुकेगा उसको मजबूती मिलेगी और ट्रंप के तेवर बता रहे हैं कि अब वो पुतिन के साथ मिलकर यूरोप विनाश की स्क्रिप्ट लिखने वाले हैं.
अमेरिका विहीन नाटो कैसा होगा?
अभी नाटो में 12500 टैंक हैं. अगर अमेरिका अपने टैंक निकाल लेता है, तो सिर्फ 7000 टैंक नाटो के पास बचेंगे. इसी तरह अभी 3500 फाइटर जेट हैं. अमेरिका के अलग होने के बाद 2100 जेट बचेंगे. नाटो के पास 4223 न्यूक्लियर हथियार हैं. अमेरिका अलग होता है, तो सिर्फ 555 परमाणु हथियार ही बचेंगे, जबकि नाटो के पास अभी 35 लाख सैनिकों की संख्या हैं. अमेरिका का नाटो का साथ छोड़ने से 25 लाख सैनिक बचेंगे.
ट्रंप ने अमेरका को नाटो गठबंधन से बाहर निकालने का फैसला लिया तो यूरोप को रूस की चुनौती का सामना अकेले ही करना पड़ेगा. ऐसे में यूरोपीय देश रूस की शक्ति का मुकाबला कर पाएंगे. इसमें संशय है क्योंकि रूस के पास दुनिया में सबसे ज्यादा परमाणु हथियार हैं. दूसरे नंबर पर अमेरिका है. सोचिए जब पुतिन और ट्रंप मिलकर यूरोप के लिए सीक्रेट डील कर लेते हैं, तो यूरोप में कितनी तबाही हो सकती है क्योंकि ट्रंप फैसला कर चुके हैं कि वो 4 ट्रिलियन डॉलर के हथियार, जेट और मिसाइलें हटाने जा रहे हैं. ऐसे में नाटो के बचे हुए 30 यूरोपीय देश बैकफुट पर आ गए हैं. साथ ही 76 साल पुराने सगठन नाटो के अस्तित्व पर भी ग्रहण लग सकता है.
अब यूरोप में समीकरण पूरी तरह से पलट जाएंगे क्योंकि अभी तक नाटो देश एकजुट थे. सभी देश मिलकर रूस के विस्तार को रोक रहे थे. फिनलैंड और स्वीडन को सदस्य भी इसीलिए बनाया गया था.
रूस 24 लाख नए सैनिकों की भर्ती करेगा
अब यूरोपीय देशों को अमेरिका के बिना रूस का मुकाबला करना है. हांलाकि लंदन में हुई मीटिंग में इस बात को लेकर कई देशों में टकराव भी हुआ कि अमेरिका को साथ देने के लिए मनाया जाए इसलिए ट्रंप के फैसलों को लेकर कोई बयानबाजी नहीं की गई बल्कि अमेरिका को शांति के लिए प्रयासरत रहने के लिए सराहना भी की गई, जबकि जेलेंस्की के तेवर भी बदले नजर आए. हां यूरोपीय देश ये जरूरत जताते रहे कि वो अमेरिका के बिना भी रूस का मुकाबला कर सकते हैं.
पोलैंड के प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे पास सैनिकों की संख्या पर्याप्त है. यूरोपीय महाद्वीप में 26 लाख सैनिक हैं, जो हर परिस्थिति के लिए तैयार हैं, जबकि रूस ने भी पलटवार की तैयारी शुरू कर दी है. रूस का लक्ष्य है कि इस साल वो करीब 24 लाख नए सैनिकों की भर्ती करेगा, यानी पुतिन यूरोपीय देशों से टकराने के लिए बड़े स्तर पर तैयारी कर रहे हैं. अमेरिका के रुख को देखते हुए नाटो ने तैयारी शुरू की है.
यूक्रेन को सैन्य मदद पहुंचाई जा रही है. यूक्रेन के पड़ोसी देशों की भी सुरक्षा बढ़ाई जा रही है. मोल्दोवा को डिफेंस सिस्टम यूरोपीय यूनियन की तरफ से दिए जाएंगे. बाल्टिक देशों में फाइटर जेट की तैनाती की जाएगी, जबकि नॉर्डिक देशों से रूस पर निगरानी के लिए ड्रोन बटालियन लगाई जाएगी. इस तैयारी पर डेनमार्क की प्राइम मिनिस्टर मैटी फ्रेडरिक्सन ने कहा है. यूरोप के पास रूस से मुकाबला करने के लिए बहुत कम वक्त बचा है.
यूक्रेन की सुरक्षा के लिए तैयार EU- डेनमार्क
डेनमार्क के प्रधानमंत्री मैटी फ्रेडरिक्सन ने कहा कि मैं हर यूरोपीय देश से कहना चाहती हूं. यूक्रेन की मदद की जाए. इसे कल नहीं बल्कि आज ही करना होगा. हर तरह की रुकावट को हटाना होगा. सैन्य और आर्थिक मदद करनी होगी. साथ ही यूक्रेन में ही हथियारों का प्रोडक्शन करना होगा, यानी एक तरफ ट्रंप के बदले तेवर से यूरोपीय देशों की नींद उड़ी हुई है, दूसरी तरफ पुतिन के विस्तारवादी मंसूबे ने बेचैनी बढ़ा दी है क्योंकि रूस ने न्यूक्लियर बेस वॉर रेडी कर दिए हैं. हांलाकि इस बीच जेलेंस्की ने खतरा भांप लिया है.
उन्होंने फिर कहा है कि अगर अमेरिका सुरक्षा की गारंटी देता है, तो शांति प्रक्रिया पर विश्वास जताया जा सकता है. हम अमेरिका के प्रयासों को लेकर गंभीर हैं, लेकिन ट्रंप के साथ जो धोखा जेलेंस्की ने किया है, ब्रिटेन के साथ खनिज डील करके जेलेंस्की ने सीधे तबाही को बुलावा भेज दिया है क्योंकि अब पुतिन को मौका मिल गया है, जिसमें ट्रंप का ग्रीन सिग्नल है कि यूक्रेन में तख्तापलट करके खदानों पर कब्जा किया जाए और यूक्रेन पर संपूर्ण कब्जा किया जा सके, जिसके लिए ट्रंप और पुतिन में खुफिया करार हो चुका है.
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