क्या है महाभारत की नियोग प्रथा? जिससे हुआ धृतराष्ट्र, विधुर और पांडवों का जन्म, जानें क्या थे संबंध बनाने के कड़े नियम.

महाभारत काल में जब भी आप किसी योद्धा या वीर का नाम सुनते हैं, तो अक्सर उनका परिचय उनकी मां के नाम से दिया जाता था. जैसे कुंतीपुत्र अर्जुन, देवकीनंदन श्री कृष्ण, गंगापुत्र भीम… इससे साफ है कि उस काल में माताओं को समाज में एक अहम स्थान दिया जाता था.
लेकिन इसी दौर में 'नियोग' जैसी प्रथा भी थी, जिसके द्वारा कई वीरों का जन्म हुआ है. आज इस प्रथा पर भले ही अलग-अलग राय है. लेकिन असल में ये प्रथा क्यों थी और कैसे उस समाज के परिदृश्य को समझाती थी, आइए इसे समझते हैं.
क्या थी महाभारत काल की नियोग प्रथा
शास्त्रों के अनुसार, ऐसे मामलों में जहां पति बिना संतान किये ही मर गया हो या नपुंसक हो. वहां पत्नी अपने पति अथवा पति की मृत्यु होने पर ससुराल वालों से आज्ञा लेकर, किसी महात्मा पुरुष की मदद से गर्भ धारण कर सकती थी. इस प्रथा को नियोग कहा जाता था. हालांकि, इसके पालन को लेकर बहुत ही कठोर नियम थे. लेखिका अमी गनात्रा अपनी किताब में विस्तार से इस प्रथा के बारे में बताते हुए कहती हैं, 'नियोग प्रथा का इस्तेमाल यौन सुख के लिए नहीं बल्कि केवल संतान प्राप्ति के लिए था. इस बारे में प्रतिबंध थे कि एक स्त्री द्वारा नियोग का अभ्यास कितनी बार किया जा सकता है. साथ ही जैविक पिता को पैदा हुए बच्चे के साथ किसी भी सम्बंध को रखने की बाध्यता नहीं थी. बच्चे को उसकी वास्तविक माता और उसके वैध पति (जिसके नाम पर नियोग किया गया था) का नाम ही मिलेगा.'
नियोग से ही हुआ धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर का जन्म
महाभारत में कई मौके ऐसे आते हैं जब हमें इस प्रथा के प्रयोग के प्रमाण मिलते हैं. प्राचीन ग्रंथों में अक्सर इस प्रथा के बारे में आपको सुनने को मिलता है, जब राजा या रानी एक प्रतापी और वीर संतान प्राप्ति के लिए नियोग प्रथा का इस्तेमाल करती थी. महाभारत काल में महान राजा शांतनु को गंगा से देवव्रत यानी भीष्म और सत्यवती से दो पुत्र हुए-विचित्रवीर्य और चित्रांगद. भीष्म एक घटनाक्रम में पहले ही आजीवन ब्रह्मचर्य की भीषण प्रतिज्ञा ले चुके थे. वहीं शांतनु और सत्यवती के बड़े बेटे चित्रांगद की युवावस्था में ही मृत्यु हो गई. विचित्रवीर्य ने काशी की दो राजकुमारियों अम्बिका और अम्बालिका से विवाह किया. वह भी बिना संतान के ही युवावस्था में ही मर गया. कुरुवंश को जीवंत रखने के लिए केवल दो ही विकल्प थे-या तो भीष्म के विवाह से, या फिर अम्बिका और अम्बालिका के नियोग की प्रक्रिया से. भीष्म अपनी प्रतिज्ञा पर अटल थे. इसलिए, रानियों को गर्भ धारण करने में मदद करने के लिए सत्यवती के पहले पुत्र, कृष्ण-द्वैपायन यानी वेद व्यास को बुलाया गया था. इसी नियोग प्रथा के प्रयोग के बाद धृतराष्ट्र का जन्म अम्बिका से, अम्बालिका से पाण्डु और अम्बिका की दासी के गर्भ से विदुर का जन्म हुआ.
महाभारत में कई मौके ऐसे आते हैं जब हमें इस प्रथा के प्रयोग के प्रमाण मिलते हैं.
इसी प्रथा से कुंती-माद्री बनीं पांडवों की मां
सिर्फ यही नहीं, अमी गणात्रा अपनी किताब में बताती हैं कि पांडवों का जन्म भी इसी प्रथा से हुआ. पाण्डु ने कुंती और माद्री से विवाह किया. पाण्डु एक ऋषि द्वारा दिए गए श्राप के कारण अपनी पत्नियों के साथ समागम करने में असमर्थ थे. पाण्डु और उनकी पत्नियों ने संतान उत्पत्ति के लिए नियोग का सहारा लिया. युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन का जन्म क्रमशः धर्मराज, वायुदेव और इंद्रदेव के माध्यम से कुंती से हुआ था. नकुल और सहदेव का जन्म माद्री और अश्विनी कुमारों से हुआ था. पाण्डु के इन्ही पांचों पुत्रों को पांडवों के नाम से जाना जाने लगा.
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