Recent Posts

Breaking News

तुम मेरी अवैध पत्नी बनोगी और बच्चे भी, महात्मा गांधी ने पत्नी कस्तूरबा से यह क्यों कहा था?

 

तुम मेरी अवैध पत्नी बनोगी और बच्चे भी, महात्मा गांधी ने पत्नी कस्तूरबा से यह क्यों कहा था?


स्पष्टवादी बा (कस्तूरबा) पति गांधी से असहमति व्यक्त करने में कभी पीछे नहीं रहीं. वे गांधी से कहती थीं कि मैं तुम्हें बहुत अच्छी तरह समझती हुं. तुम दर्जी की तरह निर्णय सिलते हो. दर्जी कपड़ा सिलता है और दूसरे को पहना देता है.

चाहे वो तंग हो या ढीला. तुम निर्णय लेते हो और मुझे पहना देते हो. लेकिन पत्नी के तौर पर मुखर बा का पति गांधी के प्रति प्रेम, विश्वास और समर्पण अटूट और अगाध था.

62 वर्षों के लंबे वैवाहिक जीवन में परिवार से लेकर देश की आजादी की लड़ाई के हर मोर्चे पर वे हर कदम पर महात्मा गांधी के साथ थीं. उन्होंने महिला अधिकारों के लिए दक्षिण अफ्रीका में जेल की सजा भुगती. स्वदेश वापसी के बाद वे लगातार सक्रिय रहीं. भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी गिरफ्तारी हुई. जेल में ही उनका निधन हुआ. बा के जन्मदिन के मौके पर पढ़िए उनसे जुड़े कुछ प्रेरक किस्से.

तब तुम पत्नी नहीं रह जाओगी!

दक्षिण अफ्रीका में एक रात पति मोहनदास गांधी की इस बात पर कस्तूरबा बिफर पड़ी थीं कि जल्दी ही हम -तुम पति-पत्नी नहीं रह जाएंगे! नाराज कस्तूरबा ने पूछा कि अगर पति -पत्नी नहीं तो फिर क्या कहलाएंगे? मुस्कुराते गांधी ने कहा कि मेरी अवैध पत्नी मानी जाओगी. चीखते हुए कस्तूरबा ने पूछा था, यह क्या बकवास है? लेकिन गांधी शांत रहे. उन्हें बताया कि यहां जल्दी ही ऐसा कानून पास होने वाला है, जिसके मुताबिक ईसाई पद्धति के अलावा अन्य विवाह अवैध माने जाएंगे. ऐसे विवाहों से होने वाली संतानें भी अवैध होंगी. वे तमाम अधिकारों से वंचित रहेंगे. कस्तूरबा सिहर उठीं. कहा कि कोई कानून इतना अमानवीय कैसे हो सकता है? इसका डटकर विरोध होना चाहिए. मैं भी इस विरोध में शामिल रहूंगी.

दक्षिण अफ्रीका की जेल यात्रा

महात्मा गांधी यही तो चाहते थे कि प्रस्तावित कानून के खिलाफ कस्तूरबा अपने मन से सामने आएं. कस्तूरबा उन दिनों बीमार चल रहीं थीं लेकिन विरोध के लिए वे कृतसंकल्प थीं. 1913 में 16 महिलाओं के साथ उन्होंने सत्याग्रह करते हुए अपनी पहली जेल यात्रा की. बीमारी के कारण फीनिक्स में वे फलों पर आश्रित थीं. जेल में सामान्य भोजन भी नसीब नहीं था. जेल अधिकारियों ने उनकी फलों की मांग ठुकरा दी. विरोध में उन्होंने उपवास शुरू कर दिया.

जेल में तीन महीने उन्होंने उपवास में गुजारे. जेल से वापसी में कस्तूरबा काफी कमजोर हो चुकी थीं. महात्मा गांधी ने नीम के पानी के कल्प से उनका उपचार किया. स्वास्थ्य में कुछ सुधार होने पर 1914 में महात्मा गांधी के साथ इंग्लैंड होते हुए उनकी भारत वापसी हुई.

महात्मा गांधी और उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी (फाइल)

जब कस्तूरबा ने पहली बार जूते-मोजे पहने

1896 में पहली बार कस्तूरबा और बच्चों को महात्मा गांधीअपने साथ दक्षिण अफ्रीका ले गए. कस्तूरबा और बच्चों के सामने कपड़ों की समस्या थी. राजकोट में पहने जाने वाले कपड़े वहां के लिए माकूल नहीं थे. महात्मा गांधी ने कस्तूरबा के लिए पारसी साड़ी और ब्लाउज खरीदे. बच्चों के लिए पारसी कोट-पैंट और टोपियां. जूते-मोजे भी खरीदे गए.

कस्तूरबा ने पहली बार जूते-मोजे पहने. मोजे पसीज जाते थे. जूते काटते थे. खाने के लिए कांटे-छुरी भी आ गए. उन दिनों बैरिस्टर गांधी पत्नी कस्तूरबा को आधुनिक बनाना चाहते थे. पारसी कपड़ों में कस्तूरबा बिल्कुल फर्क नज़र आती थीं. लेकिन डरबन में जब कस्तूरबा ने बच्चों हरि और मणि को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाना चाहा तो महात्मा गांधी इसके लिए तैयार नहीं हुए थे.

बेटे मणि ने पूछा बापू तुम्हें घर से क्यों निकाल रहे?

अन्य पति-पत्नियों जैसी लड़ाइयां गांधी और कस्तूरबा के बीच भी होती रहीं. डरबन में महात्मा गांधी के लिए उनके सहयोगी परिवार जैसे थे. सेवा का जिम्मा कस्तूरबा का था. पॉट की सफाई महात्मा गांधी करते थे. कस्तूरबा को यह बात खराब लगती थी. उनका कहना था कि लोग अपना पॉट खुद साफ करें. किसी अवसर पर गांधी ने कस्तूरबा से दफ्तर के क्लर्क का पॉट साफ करने को कहा. कस्तूरबा बिगड़ पड़ीं. कहा कि अपना धर्म-कर्म नहीं बिगाड़ूंगी. आपकी पत्नी हूं लेकिन मेरी भी स्वतंत्रता है.

तैश में महात्मा गांधी ने उन्हें बहुत डांटा और मारने के लिए भी हाथ उठाया. लेकिन कस्तूरबा के जवाब कि औरतों को सताने वाला गोरों का आरोप तुम अपने व्यवहार से सच साबित कर रहे हो, ने गांधी को निशब्द कर दिया. दोनों बच्चे पास खड़े थे. मणि ने मां से पूछा बापू तुम्हें घर से क्यों निकाल रहे हैं? हरि की आंखों से आंसू बह रहे थे. महात्मा गांधी ने अपनी गलती कुबूल की.

गांधी एक किनारे, बा दूसरे किनारे

दक्षिण अफ्रीका में कस्तूरबा बच्चों की पढ़ाई को लेकर फिक्रमंद थीं. वे उन्हें स्कूल भेजना चाहती थीं. महात्मा गांधी उनकी पढ़ाई घर पर ही चाहते थे. दिन-भर की भागदौड़ और सार्वजनिक कार्यक्रमों के बीच महात्मा गांधी के पास इस मसले पर सोचने का वक्त ही नहीं था. कस्तूरबा परेशान थीं. देर रात महात्मा गांधी घर आते थे. फिर कस्तूरबा को ब्रह्मचर्य की सीख देते. कस्तूरबा जवाब में कहती थीं, ” मैं तुम्हें बहुत अच्छी तरह समझती हुं. तुम दर्जी की तरह निर्णय सिलते हो. दर्जी कपड़ा सिलता है और दूसरे को पहना देता है. चाहे वो तंग हो या ढीला. तुम निर्णय लेते हो और मुझे पहना देते हो. जिस संकल्प की तुम बात कर रहे हो ,क्या उसके लिए विश्वास जरूरी नहीं ? जबकि एक किनारे तुम हो और दूसरे किनारे तुम्हारी पत्नी.”

अन्य पति-पत्नियों जैसी लड़ाइयां गांधी और कस्तूरबा के बीच भी होती रहीं.

पचास गिन्नियों का सोने का वो हार

दक्षिण अफ्रीका के संघर्ष में सफलता के बाद भारत वापसी की तैयारी में लगे महात्मा गांधी की विदाई की सहयोगियों और समर्थकों ने बड़ी तैयारी की थी. रुस्तम जी इसमें प्रमुख थे. उनके कीमती उपहार महात्मा गांधी को भेंट किए गए. कस्तूरबा को भी पचास गिन्नियों का सोने का एक हार उपहार में दिया गया. सेवा के एवज में महात्मा गांधी कुछ लेना नहीं चाहते थे. तमाम उपहारों की राशि वे जनकल्याण के किसी ट्रस्ट को सौंपना चाहते थे.

गांधी चाहते थे कि कस्तूरबा हार उन्हें सौंप दें. कस्तूरबा राजी नहीं थीं. पति-पत्नी में टकराव हुआ. महात्मा गांधी ने सवाल किया कि यह उपहार मेरी सेवा के एवज में मिला है या तुम्हारी? कस्तूरबा ने उत्तर दिया मैं भी दिन-रात मरती खपती हूं. लेकिन आखिर में महात्मा गांधी की ही चली. उस रात कस्तूरबा ने खाना नहीं खाया. महात्मा गांधीने उन्हें दूसरी बार गहनों से वंचित किया. इंग्लैंड में महात्मा गांधीकी बैरिस्टरी की पढ़ाई कस्तूरबा के गहने बेच कर हुई थी.

जेल में हुआ निधन

11 अप्रैल 1869 को काठियावाड़ में जन्मी कस्तूरबा बचपन में निरक्षर थीं. उस जमाने में आमतौर पर लड़कियों की शिक्षा के प्रति लोग उदासीन थे. हालांकि, शादी के बाद महात्मा गांधी उन्हें पढ़ाने के लिए प्रयत्नशील रहे. दक्षिण अफ्रीका प्रवास में वे थोड़ी अंग्रेजी सीख गईं थीं. “व्हेन गांधी कम” या फिर ” ही से समथिंग बट डू नथिंग” जैसे वाक्य वे दोहराती थीं. शुरुआती दौर में पत्नी के तौर पर वे गांधी से अनेक मसलों में असहमत होती रहीं लेकिन संघर्ष के हर कदम में उनके साथ और समर्पित रहीं.

अपनी स्वतंत्र शख्सियत को लेकर वे सजग थीं और दो टूक बोलने में यकीन रखती थीं. वक्त के साथ वे महात्मा गांधीके ढांचे में ढलती चली गईं. महात्मा गांधी की जेल यात्राओं के दौरान संघर्ष को तीव्र करने के लिए वे और अधिक सक्रिय हो जाती थीं. उन्होंने खुद भी जेल की यातना भुगती. भारत छोड़ो आंदोलन में महात्मा गांधी और अन्य तमाम नेताओं की गिरफ्तारी के बाद बा (कस्तूरबा) आगे आईं.

मुंबई के शिवाजी पार्क में भाषण देने जा रहीं कस्तूरबा को 9 अगस्त 1942 को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया. उन्हें महात्मा गांधी के साथ अहमदनगर किले में रखा गया. वे पहले से ही बीमार थीं. जेल में उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता गया. बंदी रहने के दौरान ही 22 फरवरी 1944 को उनका निधन हो गया.

No comments