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अंग्रेजों का सिर काटकर माता के इस मंदिर में चढ़ाता था ये देशभक्त, पूरी कहानी जानकार हैरान रह जाएंगे...

   

अंग्रेजों का सिर काटकर माता के इस मंदिर में चढ़ाता था ये देशभक्त, पूरी कहानी जानकार हैरान रह जाएंगे

Chaitra Navratri 2025: गोरखपुर शहर से 15-17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तरकुलहा देवी मंदिर एक प्रसिद्ध मंदिर है। यहां दूर-दूर से लोग मां तरकुलहा के दर्शन के लिए आते हैं।

चैत्र नवरात्रि के दौरान यहां लाखों भक्त मां के दर्शन के लिए आते हैं। तरकुलहा देवी मंदिर का इतिहास बाबू बंधू सिंह नामक स्वतंत्रता सेनानी से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि बाबू बंधू सिंह ने तरकुल के पेड़ के नीचे पिंड स्थापित कर देवी की पूजा की थी।

जानिए बाबू बंधु सिंह के बारे में Chaitra Navratri 2025

बाबू बंधु सिंह ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बहुत योगदान दिया है। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध में हिस्सा लिया था। डुमरी रियासत के बाबू बंधु सिंह तरकुलहा देवी को अपनी इष्ट देवी मानते थे। वे गुरिल्ला युद्ध में बहुत कुशल थे। उन्होंने इस युद्ध से अंग्रेजों को कड़ी टक्कर दी थी। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से पहले इस इलाके में एक जंगल हुआ करता था। यहां से गर्रा नदी गुजरती थी। और बाबू बंधु सिंह यहां नदी किनारे तरकुलक वृक्ष के नीचे पिंडी स्थापित कर देवी की पूजा करते थे। जब भी कोई अंग्रेज उस जंगल से गुजरता था तो बाबू बंधु सिंह उसे मार कर उसका सिर देवी के चरणों में चढ़ा देते थे। पहले तो अंग्रेजों को लगा कि उनके सैनिक जंगल में लापता हो गए हैं, लेकिन बाद में उन्हें पता चला कि बंधु सिंह उनके सैनिकों का शिकार कर रहे हैं। इसके बाद अंग्रेजों ने उनकी तलाश शुरू की, लेकिन वे अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे। बाद में उन्हें एक व्यापारी ने मुखबिर के जरिए पकड़ लिया।

सातवीं बार उन्हें फांसी दी गई

ब्रिटिश सरकार ने बंधु सिंह को फांसी की सजा सुनाई। अंग्रेजों ने बंधु सिंह को छह बार फांसी देने की कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हुए। सातवीं बार बंधु सिंह को अलीपुर चौराहे पर सरेआम फांसी दी गई। कहा जाता है कि सातवीं बार उन्होंने मां का ध्यान करते हुए प्रार्थना की। इसके बाद उन्हें फांसी दे दी गई। यह भी माना जाता है कि जब बाबू बंधु सिंह को अंग्रेजों ने फांसी दी, तो तरकुल के पेड़ का ऊपरी हिस्सा टूट गया और खून के फव्वारे निकलने लगे। इस घटना के बाद स्थानीय लोगों ने उस स्थान पर देवी की पूजा शुरू कर दी और बाद में मंदिर का निर्माण कराया।

चैत्र रामनवमी पर लगता है मेला

तरकुलहा माता मंदिर में चैत्र रामनवमी से एक महीने तक मेला लगता है। यहां दूर-दूर से लोग माता के दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर में श्रद्धालुओं को किसी तरह की परेशानी न हो, इसके लिए मंदिर समिति की ओर से विशेष व्यवस्था की जाती है। प्रशासन यहां पुलिस की भी अच्छी व्यवस्था करता है, ताकि श्रद्धालुओं को दर्शन करने में कोई परेशानी न हो। मंदिर के पुजारी ने बताया कि मां तरकुलहा माता की पूजा तरकुल के पेड़ से होती है। यहां दूर-दूर से लोग आते हैं। भक्त यहां फल, फूल और नारियल चढ़ाते हैं। इससे प्रसन्न होकर मां उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

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