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फायर सीजन में प्रदेश के जंगलों को आग से बचाएगा ड्रोन, विभाग ने लिया नई तकनीक का सहारा

 


फायर सीजन में हिमाचल की वन संपदा की सुरक्षा के लिए इस बार ड्रोन के माध्यम से निगरानी की जा रही है। यह पहला मौका है, जब वन विभाग ने वनों को आग से बचाने के लिए ड्रोन का सहारा लिया है। शुरुआती दौर में पांच ड्रोन की मदद ली जा रही है, जबकि आने वाले समय में ज्यादा ड्रोन वनों के चप्पे-चप्पे पर पैनी नजर रखेंगे। 

साथ ही फायर अलर्ट मैसेजिंग सिस्टम (एफएएमएस) के लिए कर्मचारियों (वन मित्र) सहित रैपिड फोरेस्ट फायर फाइटिंग फोर्स, स्वयंसेवकों व पंचायत प्रतिनिधियों का पंजीकरण किया है। मैसेज मिलते ही तत्काल स्पॉट पर पहुंचकर आग पर काबू पाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। 

फायर सीजन के दौरान हिमाचल के वन वनाग्नि के गंभीर खतरे का सामना करते हैं। यह आग न केवल वनस्पति और जीव जंतुओं को नष्ट करती है, बल्कि जान-माल और आजीविका को भी खतरे में डालती है।

हिमाचल प्रदेश का भौगोलिक क्षेत्रफल 55673 किलोमीटर है, जिसमें से 66 फीसदी वन के रूप में वर्गीकृत हैं। गत वर्ष पहली अप्रैल से 31 मार्च, 2025 तक राज्य में 2496 वनाग्नि घटनाएं दर्ज की गईं, जिनसे लगभग 10.79 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। 

प्रभावित क्षेत्र लगभग 30786 हेक्टेयर है। इन आग की घटनाओं के परिणाम विनाशकारी होते हैं। आग से निवास स्थान नष्ट होते हैं पारिस्थितिकी तंत्र को भी नुकसान पहुंचाता है। लोगों से अपील की गई है कि यदि जंगल में धुंआ या लपटें दिखाई देती हैं, तो तुरंत निकटतम वन विभाग कार्यालय या आपातकालीन सेवाओं पर सूचित करें। टोल फ्री नंबर 1077 (एसडीएमए) और 1070 (डीडीएमए) पर संपर्क कर सूचित किया जा सकता है। 

वहीं हर वन प्रहरी ने स्कूलों को गोद लिया है ताकि स्कूल बच्चों में जागरूकता फैलाए जा सके। उधर, निशांत मंडोत्रा (आईएफएस) मुख्य अरण्यपाल फोरेस्ट प्रोटेक्शन एंड फायर कंट्रोल विंग (वन विभाग) ने बताया कि वनों को आग से बचाने के लिए इस बार ड्रोन की सहायता ली जा रही है। अभी तक पांच ड्रोन की मदद ली जा रही है, जबकि भविष्य में इनकी संख्या को बढ़ाया जाएगा। ड्रोन के जरिए वनों की निगरानी की जा रही है और जहां भी सूचना मिलती है तत्काल आग पर काबू पाने के लिए हरस्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। फायर सीजन पहली अप्रैल से लेकर 30 जून तक रहता है। (एचडीएम)

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